13. ग्रामीण-नगरीय उपान्त की विशेषता तथा समस्याएँ
13. ग्रामीण-नगरीय उपान्त की विशेषता
ग्रामीण-नगरीय उपान्त की विशेषता⇒
ग्रामीण-नगरीय उपान्त प्रदेशों की विशेषताओं का अध्ययन कई भूगोलवेताओं ने किया है। इनमें आर. ई. पहल, उजागर सिंह, सुदेश नागिया इत्यादि का महत्वपूर्ण कार्य है। आर. ई. पहल के अनुसार विकसित देशों में ग्रामीण-नगरीय उपान्त क्षेत्रों की निम्नलिखित विशेषताएं होती है-
(i) यहाँ अधिवासीय क्षेत्र विलगाव के नियम पर आधारित होता है।
(ii) यहाँ रखने वाले लोग आर्थिक-सांस्कृतिक कार्यों के लिए नगरों से जुड़े रहते हैं।
(iii) उपान्त प्रदेश में जगह-2 पर औद्योगिक प्रतिष्ठान, प्रशासनिक संस्थाएँ, शिक्षण संस्थान, शोरूम, वर्क शॉप, तथा विभिन्न आय के लोगों का अधिवासीय क्षेत्र दिखाई देता है।
(iv) उपान्त क्षेत्र चयनित जनसंख्या स्थानान्तरण का लक्ष्य क्षेत्र होता है क्योंकि नगर के केन्द्र में जनसंख्या दबाव अधिक होता है। प्रदूषण की समस्या होती है तथा अधिवासीय मकान और भूमि मँहगे होते हैं।
(v) उपान्त क्षेत्र जनसंख्या अभिगमन का क्षेत्र होता है। इन क्षेत्रों में दिन में जनसंख्या घनत्त्व घट जाती है और रात में जनसंख्या घनत्व बढ़ जाती है।
(vi) उपान्त क्षेत्र मिश्रित भूमि उपयोग के क्षेत्र होते हैं, अर्थात् खाली स्थानों में गहन कृषि का कार्य किया जाता है तो दूसरी ओर अधिवासीय कार्य भी साथ-2 किये जाते है।
(vii) कानून के दृष्टिकोण से उपान्त क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्र होते हैं जबकि कार्य एवं जनसंख्या के दृष्टिकोण से नगर समान होते हैं।
(viii) विकसित देशों में उपांत क्षेत्र नियोजित होते हैं अर्थात् नगर नियोजन के साथ-2 उपान्त क्षेत्रों के नियोजन पर भी विशेष जोर दिया जाता है।
भारतीय नगरों के संदर्भ में 1961 ई० में पाँच नगर कानपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद तथा लखनऊ (KAVAL) का अध्ययन करने के बाद उपान्त क्षेत्रों के विशेषताओं का चर्चा किया। जैसे :
(i) भूमि प्रयोग के दृष्टिकोण से यह सतत् परिवर्तन क्षेत्र होता है यानी कृषि भूमि में लगातार कमी आते जाती है और निर्मित क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी होते जाती है। यहाँ कार्यिक संरचना में भी तेजी से परिवर्तन होता है।
(ii) यहाँ लगातार घरों के आकार एवं प्रकार में परिवर्तन देखा जा सकता है।
(iii) यह मिश्रित अर्थव्यवस्था का क्षेत्र होता है।
(iv) उपान्त क्षेत्र में नगरीय सार्वजनिक सेवाओं का अभाव होता है क्योंकि यह क्षेत्र नगर प्रशासन अन्तर्गत नहीं आते हैं।
(v) उपान्त क्षेत्रों में नगरीय संस्कृति और नैतिकता का अभाव होता है।
JNU के प्रो० सुदेश नागिया 1976 ई० में दिल्ली महानगरीय प्रदेश का अध्ययन करते हुए निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया हैं-
(i) उपांत क्षेत्र झुग्गी-झोपड़ी और गन्दी बस्ती के क्षेत्र होते हैं।
(ii) यह मिश्रित कृषि भूमि उपयोग का क्षेत्र होता है।
(iii) कृषि क्षेत्र की भूमि कम होती है लेकिन कृषि कार्यों की सघनता में वृद्धि होती है।
(iv) यहाँ नगरीय सुविधाओं का अभाव होता है।
(v) उपान्त क्षेत्र में सतत निर्माण की प्रक्रिया चलते रहती है।
(vi) उपान्त क्षेत्र में ग्रामीण एवं नगरीय संस्कृति साथ-2 मिलती है।
उपान्त प्रदेश के तीव्र फैलाव का कारण
उपान्त क्षेत्रों के तीव्र फैलाव का दो प्रमुख कारण होते हैं:-
(i) विकसित देशों में CBD से जनसंख्या का चयनित स्थानान्तरण।
(ii) विकासशील देशों में ग्रामीण-नगरीय जनसंख्या के स्थानान्तरण का जमघट।
उपान्त प्रदेश की समस्याएँ
उपान्त प्रदेश की निम्नलिखित समस्याएँ है:-
(i) इसके तीव्र फैलाव के कारण यहाँ गंदी बस्तियों का विकास तेजी से होता है। लंदन, न्यूयार्क में एशियाई एवं निग्रो लोगों की गंदी बस्ती को घेटों से संबोधित करते हैं। जबकि दिल्ली के उपान्त क्षेत्रों में विकसित झुग्गी-झोपड़ी जे.जे. कोलनी के रूप में प्रसिद्ध है।
(ii) उपान्त क्षेत्रों में पूर्ण नगरीय विकास के पूर्व ही पर्यावरण असंतुलन की समस्याएँ पाई जाती है।
(ii) यहाँ अनियोजित विकास की समस्याएँ भी पायी जाती हैं।
(iii) सेवाओं एवं जन सुविधाओं का अभाव होता है। जैसे- पेयजल, सुलभ-शौचालय, मनोरंजन पार्क और स्वास्थ केन्द्र नहीं के बराबर मिलते हैं।
(v) उपांत क्षेत्रों में जल निकासी की भी गंभीर समस्या पायी जाती है।
(vi) सड़क एवं गलियों में प्रकाश प्रबंध नहीं होता है।
(vii) उपान्त क्षेत्र से बड़ी-2 एवं चौड़ी से चौड़ी सड़के तो अवश्य गुजरती है लेकिन सहायक लड़कों की स्थति दयनीय होती है।
(viii) इस प्रदेश में कई सामाजिक समस्याएँ भी होती है। जैसे- अशिक्षा, वेश्यावृति, प्रवजन, जनसंख्या वृद्धि, भूमि बेदखल, कर इत्यादि।
(ix) उपान्त क्षेत्र कई सांस्कृतिक समस्याओं से भी जूझ रहे होते हैं। इस प्रदेश में न तो नगरीय संस्कृति पायी जाती है और न हीं ग्रामीण संस्कृति।
(xi) उपान्त क्षेत्र में भूमि उपयोग संबंधी कोई नियंत्रण नहीं होता है।
निष्कर्ष:- इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि ग्रामीण-नगरीय उपान्त क्षेत्र बस्ती भूगोल की एक महत्वपूर्ण संकल्पना रहीं है। इस प्रदेश के विकास के कारण उनकी समस्याओं का अध्ययन करके ही संतुलित नगर नियोजन की संकल्पना विकसित की जा सकती है।
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