Origin Of The Earth/पृथ्वी की उत्पति

 Origin Of The Earth/पृथ्वी की  उत्पति




●हमारी पृथ्वी का निर्माण 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ । पृथ्वी के उत्पति के संदर्भ में कई सिद्धान्त दिए गए है । पहला सिद्धान्त  ‘कास्ते-द-बफन’ के द्वारा प्रतिपादित किया गया था ।

● उन्होंने 1947 ई० में ‘पुच्छल तारा परिकल्पना’ (Comet Hyppothesis) प्रस्तुत किया ।

● इनके सिद्धान्त के बाद कई विद्वानों ने अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया ।

● इन सिद्धांतों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि कुछ विद्वानों का मानना है कि हमारी पृथ्वी/सौरमंडल के निर्माण में केवल एक ही तारा का योगदान है जबकि कुछ लोगों के मतानुसार हमारे पृथ्वी के निर्माण में एक से अधिक तारों का योगदान है ।

● तारों की संख्या के आधार पर सभी सिद्धान्तों को दो भागों में बाँटते है ।

★ अद्वैतवादी संकल्पना (Monistic Concept) :-

● इसमें एक ही तारे से सम्पूर्ण ग्रहों की उत्पत्ति को स्वीकार किया गया है ।

● इसे (पैतृक संकल्पना)  भी कहते है । इसके अनुसार सम्पूर्ण ग्रहों  की उत्पत्ति में एक ही पिता तारे की भूमिका रही है ।

● इस संकल्पना पर चार सिद्धान्त दिए गए है :-

1. पुच्छलतारा परिकल्पना (1749) - कास्ट-द-बफन

2. वायव्य राशि परिकल्पना (1955) - इमैनुएल कांट

3. निहारिका परिकल्पना (1796) - लाप्लास

4. उल्कापिंड परिकल्पना (1919) – लॉकियर

द्वैतवादी संकल्पना(Dualistic Concept) :-

● इस संकल्पना में ग्रहों की उत्पति दो तारों से मानी गई है।

● इस सिद्धांत के अनुसारग्रहों की उत्पति को आकस्मिक घटना से जोड़ा जाता है ।

● द्वैतवादी संकल्पना पर आधारित प्रमुख सिद्धान्त निनमलिखित है :

1. ग्रहाणु परिकल्पना(1905) - टी०सी० चैम्बरलिन

2.ज्वारीय परिकल्पना(1919) – जेम्स जीन्स एवं जेफरीज

3. द्वैतारक परिकल्पना - एच० एन० रसेल

4. विखण्डन का सिद्धान्त – रॉसजन

5. विधुत चुम्बकीय परिकल्पना – डॉ० आल्फवेन

6.निहारिका मेघ सिद्धान्त(1974) - डॉ० वॉन विजसैकर

7. नवतारा परिकल्पना-  फ्रेड होयल एवं लिटिलटन 

8. अन्तरतारक धूलकण परिकल्पना - ऑटो श्मिड

9. सिफीड संकल्पना - ए०सी० बनर्जी

10. घूर्णन एवं ज्वारीय परिकल्पना - रॉसजन

11. वृहस्पति- सूर्य द्वैतारक  - ई०एम० ड्रोवीशेवस्की

● पृथ्वी सौरमण्डल का एक ग्रह है । सौरमण्डल की उत्पति से ही पृथ्वी की उत्पति की व्याख्या होती है। 

● प्राचीन ग्रंथों में सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माणकर्ता ‘ब्रह्मा’ को माना गया है।

●पृथ्वी की उत्पति के संदर्भ  में दिए गए वैज्ञानिक सिद्धान्तों की विवेचना निम्न है –

●‘पुच्छल तारा परिकल्पना’ (Comet Hyppothesis) :- इस परिकल्पना के अनुसार बहुत समय पहले ब्रह्माण्ड में  घूमता हुआ एक विशालकाय पुच्छल तारा सूर्य के निकट से गुजरते वक्त सूर्य से टकरा गया।

● इस टक्कर के उपरांत बहुत से पदार्थ सूर्य से छिटक कर अलग हो गया । सूर्य से छिटक कर अलग हुए पदार्थ से ही सौरमण्डल का निर्माण हुआ है।

आलोचना :-

● पुच्छलतारा अपनी कक्षा छोड़कर दूसरी कक्षा में आकर सूर्य से कैसे टकराया।

● सूर्य से पुच्छल तारे की टक्कर इतनी महत्व की नहीं होगी कि उससे पूरा सौरमण्डल का ही निर्माण हो ।

● अगर मान लिया जाए कि तककर हुआ ही तो टक्कर के बाद निकले पदार्थों ने गोलाकार रूप कैसे धारण कर लिया।

● सूर्य के पास बहुत छोटे ग्रह तथा बीच में कुछ बड़े ग्रह और फिर छोटे ग्रह का क्रम है इसकी व्याख्या यह सिद्धान्त नही करता है।

● पुच्छलतारे सूर्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि दिनों के परिणाम में तापीय अंतर होता है।


वायव्य राशि परिकल्पना (1955)-इमैनुएल कांट- 

●इमैनुएल कांट का यह सिद्धांत न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त पर आधारित है।

● कांट कहते है  “तुम मुझे आद्य पदार्थ दो और मैं पृथ्वी का निर्माण करके दिखाता हूँ”।

● इस परिकल्पना के अनुसार प्रारम्भ में समस्त आकाश में आद्य पदार्थ फैले हुए थे।

● ये सभी आद्य पदार्थ गुरुत्वाकर्षण बल के कारण टकराने लगे।

●टक्कर से पहले उत्पन्न अत्यधिक ताप के कारण आद्य पदार्थ पिघलकर द्रव एवं गैस के अवस्था मे बदल गए।

● गैसीय गन के कारण गैसीय आद्य पदार्थ परिभ्रमण करने लगे लेकिन परिभ्रमण करते हिये गैसीय पदार्थ में गुरुत्वकर्षण बल की तुलना में केन्द्रापसारी बल अधिक था। जिसके कारण गैसीय पिंड के मध्यवर्ती भाग में  एक उभार पैदा हुआ।

● इस प्रकार से नौ गोलाकार छल्ला बाहर की ओर निकला और इनके ठंडा होने से ही नौ ग्रह का निर्माण हुआ ।

● बचा हुआ अपशिष्ट भाग सूर्य के रूप में मौजूद है ।

आलोचना

● अगर आद्य पदार्थ में गुरुत्वाकर्षण शक्ति था तो टकराने के पहले यह किस रूप में था और बाद में शक्ति कैसे प्रकट हुआ । इसकी व्याख्या का कांट नहीं करते ।

● यह सिद्धान्त संवेग संरक्षण के सैद्धान्त के विरुद्ध है । 

● आद्य पदार्थ के टकराने से उन कणों में परिभ्रमण  गति कैसे उत्पन्न हो सकता है ।

● कांट ने अपनी परिकल्पना में यह बतलाया था कि छल्ला या निहारिका के परिभ्रमण के दौरान जैसे-जैसे उसका आकार बढ़ता गया उसकी गति बढ़ती गयी ।


निहारिका परिकल्पना(Nebular Hypothesis)

● लाप्लास ने अपना सिद्धान्त इमैनुएल कांट के वायव्य राशि परिकल्पना में सुधार के रूप में प्रस्तुत किया था ।

● इन्होनें निहारिका सिद्धान्त 1796 में “Exposition of The World System”  नामक पुस्तक में प्रस्तुत किया था ।

● लाप्लास ने कांट के सिद्धान्त में तीन त्रुटियां बतलाई ।

1. आद्य पदार्थों के टकराने से बहुत बड़ी मात्रा में वाष्प का निर्माण नहीं हो सकता है ।

2. चट्टानों के टकराने से घूर्णन गति उत्पन्न नहीं हो सकती ।

3. निहारिका के आकार बढ़ने से गति में वृद्धि नहीं हो सकती ।

● इन आलोचनाओं का समाधान प्रस्तुत करते हुए लाप्लास ने कहा कि आद्य  पदार्थ पहले से ही घूर्णन गति में थे ।

●धीरे-धीरे गुरुत्वाकर्षण बल के कारण संघनन या संकुचन की क्रिया प्रारम्भ हुई, जिसके फलस्वरूप आद्य पदार्थ में घूर्णन गति बढ़ गया ।

● इस घूर्णन के कारण निहारिका का आकार तश्तरीनुमा बन गया ।

● निहारिका में जैसे जैसे घूर्णन वेग बढ़ता गया वैसे-वैसे अपकेंद्रीय बल में भी वृद्धि होती गयी ।

● जिसके फलस्वरूप निहारिका के ऊपरी भाग के वलय के रूप में पदार्थ अलग होते गए और ये पदार्थ धीरे-धीरे ठंडा होकर ग्रह एवं उपग्रह के रूप में परिणत हो गए ।

द्वैतारक परिकल्पना (Binary-star-Hypothesis)

● इस सिद्धांत का प्रतिपादन एच० एन० रसेल ने किया ।

● इनका मानना था कि प्रारम्भ में सूर्य तथा उसका एक साथी तारा एक ही केन्द्र के चारो ओर चक्कर लगा रहा था । उसी समय एक तीसरी तारा सुदूर से सूर्य तथा साथी तारे के पास गुजरने लगा ।

● धीरे-धीरे आकर्षण शक्ति के कारण ये पदार्थ तारा से अलग हो गया होगा ।कालन्तर में यही पदार्थ ठंडा एवं घनीभूत होकर ग्रह में प्रिंट हो गए।


● रसेल पुनः ये बतलाते है कि स्वंय ग्रहों के बीच में आकर्षण बल होंगें जिसके परिणामस्वरूप ग्रहों से भी ज्वार के रूप में पदार्थ पृथक होकर उपग्रह का निर्माण हुए होंगें ।

● रसेल का कहना है “विशाल तारे का सूर्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि यह सूर्य से काफी दूर था ।"

विशेषता :-

● ग्रहों के कोणीय संवेग उसके साथ आने वाले टारे के कोणीय संवेग से अधिक है । यह सिद्धांत इसकी पुष्टि करता है ।

● ग्रहों के बीच अधिक दूरियां क्यों पायी जाती है, इसे साबित करता है।

● इस परिकल्पना में किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि सूर्य पहले से ही साथी तारे के साथ था । युग्म तारा का प्रमाण आज भी अंतरिक्ष मे मौजूद है ।

आलोचना :-

● विशालकाय तारे कहाँ गए, इसकी व्याख्या नहीं करता ।

● साथी तारे का अवशिष्ट भाग का क्या हुआ ।


ज्वारीय परिकल्पना(Tidal Hypothesis):-

● इस सिद्धांत को जेम्स जीन्स ने 1919 ई० में प्रस्तुत किया जबकि 1929 ई० में जेफ्रीज महोदय ने इसमें संसोधन प्रस्तुत किया ।

● इस सिद्धांत के अनुसार घूमता हुआ एक विशालकाय तारा सूर्य के पास से गुजरा ।

● उस तारे के आकर्षण के कारण सूर्य के सतह पर ज्वार उत्पन्न हुआ।

● घूमते तारे के आगे बढ़ जाने से सूर्य में उत्पन्न ज्वार  एक लम्बा गैसीय पिंड के रूप में सूर्य से अलग हो गया । परन्तु यह ज्वार तारा तक नहीं पहुंच पाया और सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृताकार पथ में परिभ्रमण करने लगा ।


● इस अलग हुए ज्वार का मध्य भाग मोटा और दोनों किनारे पर पतला आकार ग्रहण कर लिया । यह ज्वार सूर्य की परिक्रमा करते हुए ठंडा होकर छोटे-छोटे गोलाकार खंडों में विभाजित हो गए और नौ ग्रहों का निर्माण हुआ ।

● परिक्रमा क्रम में जब ये ग्रह सूर्य के निकट आये तो ठीक उसी प्रकार सूर्य के आकर्षण बल के कारण ग्रहों के सतह पर भी ज्वार उत्पन्न हुआ और ये अलग होकर उपग्रह का निर्माण किया ।

● 1929 ई० में जेफरी ने इस सिद्धान्त में संसोधन प्रस्तुत करते हुए कहा कि घूमता हुआ तारा सूर्य के पास आकर इससे टकरा गया जिसके कारण सूर्य का कुछ अंश छिटक कर अंतरिक्ष मे बिखर गया फलस्वरूप ग्रहों का निर्माण हुआ ।

● गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ये ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगे ।

विषेशता :-

● सिगार की आकृति के अनुसार ही ग्रहों का वितरण है ।

● इस सिद्धांत में यह भी माना गया कि सूर्य से निकले हुए पदार्थ द्रव के रूप में पिघले हुए थे । यह भी प्रमाणित हो चुका है कि हमारी पृथ्वी प्रारंभ में द्रव के समान थी ।

● इस सिद्धान्त के आधार पर प्लूटो ग्रह का खोज संभव हो सका ।


अलोचना :-

● एक तारे से दूसरे तारे इतना दूर है कि वो एक-दूसरे के समीप आ ही नहीं सकता ।

● रसेल का कहना है कि इस सिद्धांत के आधार पर इतना विशालकाय सौरमण्डल का निर्माण नहीं हो सकता ।

● सूर्य का आंतरिक भाग अत्यधिक गर्म है इसके कारण सूर्य के आंतरिक भाग से पदार्थ स्वंय ही निकलने की स्थिति में होती है । विशालकाय तारा सूर्य के पास से होकर गुजरा होगा तो तापमान में वृद्धि हुई होगी, ऐसी स्थिति में सूर्य से अलग हुए पदार्थ अंतरिक्ष में विखर जाने की प्रवृति रखेंगें न कि ठंडा होकर ग्रह का निर्माण करेंगें।

● यह सिद्धांत ग्रहों के कोणीय वेग की व्याख्या नहीं करता।


 सीफीड संकल्पना(Cepheid Theory)

●  यह परिकल्पना 1942 ई० में ए० सी० बनर्जी के द्वारा दिया गया था।

● सीफीड सूर्य से भी बड़ा एक ऐसा तारा है जो समय समय पर क्रमबद्ध रूप से संकुचित एवं प्रसारित होता है। जिसके कारण प्रकाश के तीव्रता में भी कमी या वृद्धि होती है।

● बनर्जी के अनुसार सौरमण्डल की उत्पति इसी प्रकार के सीफ़ीड तारे से हुआ है।

●पहले से विद्यमान सीफ़ीड तारा के पास से एक विशाल भ्रमणशील तारा गुजरा।

● ज्वारीय प्रभाव के कारण सीफ़ीड तारा से कुछ पदार्थ पृथक होकर अंतरिक्ष में फैल गए और अंततःसंघनित होकर ग्रहों में परिणत हो गए।

● सीफ़ीड तारा का अवशिष्ट भाग सूर्य कहलाया और आगन्तुक तारा अंतरिक्ष में विलीन हो गया।

ग्रहाणु परिकल्पना(Planetsimal Hypothesis) :-

● इस परिकल्पना को चैम्बरलीन एवं मोल्टन ने प्रस्तुत किया था।

 ● इस परिकल्पना के अनुसार सूर्य के पास से एक घूमता हुआ तारा गुजरा जिसके कारण सूर्य के बाहरी क्षेत्र में पाए जाने वाले पदार्थ छिटक कर अंतरिक्ष में बिखर गया।

● ये छिटके हुए पदार्थ तारे के आकर्षण के कारण तारे की ओर बढ़े परन्तु तारे के दूर चले जाने के कारण छिटके हुए पदार्थ पुनः सूर्य के ही चारों ओर चक्कर लगाने लगे।

● छिटके हुए पदार्थ को ही चैम्बरलीन ने ग्रहाणु कहा।

● ग्रहाणु के कण ही संघनित होकर ग्रह का निर्माण किये।


आंतरिक धूलकण परिकल्पना(Inter Stellar Dust Hypothesis)

● ऑटो श्मिड एक रूसी वैज्ञानिक थेम इन्होंने अपने सिद्धांत में बतलाये कि प्रारम्भ में एक तारा जो भ्रूण का काम करता था। उस भ्रूणीय तारा के चारों ओर धूलकण एवं गैस फैले हुए थे।

● तारा भ्रमणशील था इसीलिए धूलकण भी उसके चारों ओर घूमते रहते थे। इस कारण धूलकणों  में टक्कर का कार्य होता रहता था। इसी धूलकण के संघनन से ग्रह एवं उपग्रह की उत्पति हुई है।


सुपर नोवा या नवतारा परिकल्पना(Nova Hypothesis) :-फ्रेड होयल & लिटिलटन


● यह वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार अंतरिक्ष में एक युग्म तारा पहले से मौजूद था।

● वैसा तारा जिसमें अभी-अभी विस्फोट हुआ हो उसे सुपरनोवा कहते है, कुछ दिन पश्चात उसे ही नोवा कहते है।

● इस सुपरनोवा तारे का साथी तारा आज सूर्य के रूप में मौजूद हौ। जो तारा सुपरनोवा के रूप में था उससे बड़ी मात्रा में पदार्थ बाहर निकल आये। ये बाहर निकले हुए पदार्थ एक ही दिशा में कम परन्तु भिन्न-दिशाओं में अधिक दूरी तक फैल गए। वे पदार्थ जो छिटक कर सूर्य के चारों ओर गये थे , वे सूर्य से आकर्षित होकर सूर्य के चारों ओर घूमने लगे और ग्रहों का निर्माण कर लिए ।

● जब तारा में विस्फोट हुआ तब उसी समय वहाँ से एक भ्रमणशील तारा गुजरा जिसके कारण सुपरनोवा बने तारे का अवशिष्ट भाग उस भ्रमणशील तारे से आकर्षित होकर अंतरिक्ष में विलीन हो गया।

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