कोपेन का जलवायु वर्गीकरण /Koppens' Climatic Classification
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
(Koppens' Climatic Classification)
विश्व के जलवायु वर्गीकरण की दिशा में अनेक कार्य किए गए हैं जिनमें कोपेन की योजना को आधारभूत योजना के रूप में मान्यता प्राप्त है। कोपेन का पूरा नाम व्लादिमिर कोपेन था जिसका जन्म जर्मनी में हुआ था। लेकिन आस्ट्रिया के ग्राज विश्वविद्यालय में जीव विज्ञान के प्राध्यापक थे। उन्होंने 1900 से 1936 ई० तक अनुसंधान प्रपत्र के माध्यम से कई बार जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया। अनुसंधान प्रपत्र में इनका वर्गीकरण 1900, 1918 तथा 1936 में प्रकाशित हुआ। कोपेन के द्वारा प्रस्तुत संशोधित और मान्य जलवायु वर्गीकरण 1936 ई० में "हैंडबुक डर क्लाइमेटोलॉजी" पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। वर्तमान समय में कोपेन के द्वारा प्रस्तुत 1936 ई० की योजना विश्वव्यापी मान्यता रखती है।
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की विशेषता:-
◆ कोपेन अपना जलवायु वर्गीकरण अनुभव के आधार पर प्रस्तुत किया था। इसीलिए इनकी योजना को आनुभाविक विधि (Empirical Method) पर आधारित माना जाता है।
◆इनका वर्गीकरण मुख्यतः वनस्पति के वर्गीकरण पर आधारित है। कोपेन ने डी. कैंडोल के द्वारा प्रस्तुत वनस्पति वर्गीकरण को ही जलवायु वर्गीकरण का आधार माना।
◆कोपेन का मानना था कि वनस्पति के विकास पर तापमान और वर्षा की वास्तविक मात्रा का भी प्रभाव पड़ता है। इसीलिए उन्होंने जलवायु वर्गीकरण के दौरान तापमान तथा वर्षा के वास्तविक मात्रा को भी ज्ञात किया और उसे अपने जलवायु वर्गीकरण में शामिल किया। यही कारण है कि इनके वर्गीकरण को परिणात्मक वर्गीकरण या मात्रात्मक वर्गीकरण (Quantitative Classification) भी कहते हैं।
◆कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण में कई सांकेतिक अक्षरों का प्रयोग किया है जिसका मूल उद्देश्य मौसमी विशेषताओं को सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत करना है। इस प्रकार के प्रस्तुतीकरण के द्वारा जलवायु के विभिन्न घटकों का मूल्यांकन एक ही नजर में किया जा सकता है।
◆ कोपेन का जलवायु वर्गीकरण तीन पदानुक्रम में प्रस्तुत किया गया है। प्रथम पदानुक्रम में उन्होंने विश्व की जलवायु को 6 भागों में बाँटा है। इसके लिए कोपेन ने A, B, C, D, E और H अक्षरों का प्रयोग किया है।
दूसरे पदानुक्रम के जलवायु वर्गीकरण को प्रस्तुत करने के लिए चार सांकेतिक बड़े अक्षर S,W,T,F का प्रयोग किया है।
तीसरे पदानुक्रम के लिए उन्होंने अंग्रेजी के 17 छोटे अक्षरों का प्रयोग किया है। जैसे - a, b, c, d, f, g, h, i, k, k', m, n, s, w, w', w", x । इस तरह उन्होंने अंग्रेजी के 10 बड़े एवं 17 छोटे अक्षरों का प्रयोग किया।
◆कोपेन के जलवायु वर्गीकरण को एक व्यवहारिक वर्गीकरण माना जाता है क्योंकि इनके जलवायु वर्गीकरण से जलवायु प्रदेशों की विशेषताओं का बोध होता है।
◆ कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में दो जलवायु प्रदेशों के बीच किसी भी संक्रमण पेटी का विकास नहीं होता है।
◆ कोपेन ने प्रथम पदानुक्रम वाले जलवायु प्रदेशों को एक अक्षर से, दूसरे पदानुक्रम के जलवायु को दो अक्षर से और तीसरे पदानुक्रम के जलवायु को तीन अक्षर से प्रस्तुत किया।
इस तरह इनका वर्गीकरण एक बहु स्तरीय योजना है।
◆कोपेन ने विश्व को प्रथम पदानुक्रम में 6 और द्वितीय पदानुक्रम में 13 और तृतीय पदानुक्रम में 23 भागों में जलवायु को बाँटा है। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर तापमान और वर्षा का आँकड़ा लघु स्तर पर इकट्ठा किया जाता है तो तीसरे पदानुक्रम में जलवायु वर्गीकरण की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है।
◆ कोपेन का जलवायु वर्गीकरण जलवायु के कारकों पर आधारित है। इसलिए इनके वर्गीकरण को अनुवांशिक वर्गीकरण (Genetic Classification) भी कहा माना जाता है।
जलवायु वर्गीकरण के आधार
कोपेन ने अपना जलवायु वर्गीकरण हेतु चार कारकों को आधार बनाया जैसे - वनस्पति तापमान, वर्षा और उच्चावच।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण मुख्यतः डी. कैंडोल द्वारा प्रस्तुत वनस्पति वर्गीकरण पर आधारित है। डी. कैंडोल महोदय (वनस्पति शास्त्री) ने विश्व को 5 वनस्पति क्षेत्रों में बाँटा था। इसलिए कोपेन महोदय ने भी प्रारंभ में विश्व को 5 जलवायु प्रदेशों में वर्गीकरण किया और उन्होंने बताया कि प्राकृतिक वनस्पति के प्रदेश ही प्रमुख जलवायु प्रदेश है। ऐसा बताने के पीछे उनका उद्देश्य था कि जलवायु प्रदेशों की सीमा का निर्धारण किया जा सके।
कोपेन तापमान को दूसरी बार प्रथम एवं द्वितीय पदानुक्रम के जलवायु वर्गीकरण हेतु आधार माना। जबकि वर्षा को द्वितीय एवं तृतीय पदानुक्रम के जलवायु वर्गीकरण को प्रस्तुत करने में प्रयोग किया। कोपेन ने यह भी बताया कि औसत वार्षिक तापमान प्रथम पदानुक्रम की वृहद जलवायु प्रदेशों को निर्धारित करने में मदद करता है जबकि जलवायु के अन्य कारण क्षेत्रीय विषमता उत्पन्न करते हैं। इसलिए उन्होंने अन्य कारणों को लघु स्तर पर जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत करने के लिए उनका प्रयोग किया।
कोपेन ने प्रारंभ में केवल वनस्पति को ही आधार मानकर जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया। जब उनकी आलोचना होने लगी तो उन्होंने अपना वर्गीकरण हेतु वनस्पति के अलावे तापमान एवं वर्षा को आधार बनाया। पुनः जब उन्हें यह पता चला कि उच्चावच के कारण भी जलवायु में संशोधन होता है तो पुनः उन्होंने 1936 ई० में वनस्पति, तापमान, वर्षा और उच्चावच को ध्यान में रखते हुए जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की योजना/प्रणाली
कोपेन के द्वारा प्रारंभ की गई यह परंपरा आगे चलकर थार्नथ्वेट और ट्रीवार्था ने भी इनका अनुसरण किया। कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण में अंग्रेजी के 10 बड़े तथा 17 छोटे अक्षरों का प्रयोग सांकेतिक रूप से किया जिनका अर्थ निम्नवत है -
रोमन लिपि के 10 बड़े अक्षर एवं अर्थ :
A = उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
B = उपोष्ण शुष्क जलवायु प्रदेश
C = शीतोष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश
D = शीत जलवायु प्रदेश
E = ध्रुवीय जलवायु प्रदेश
H = पर्वतीय/उच्च भूमि की जलवायु प्रदेश
कोपेन उपरोक्त 6 बड़े अक्षरों के अलावे चार अन्य बड़े अक्षरों का प्रयोग किया है जो B और E जलवायु प्रदेश को लघु स्तर पर जलवायु वर्गीकरण में मदद करता है।
S = अर्द्ध शुष्क / स्टेपी जलवायु
W= शुष्क / मरुस्थलीय जलवायु
T = टुण्ड्रा प्रकार की जलवायु
F = हिमाच्छादित जलवायु
रोमन लिपि के 17 छोटे अक्षर एवं अर्थ :
कोपेन दूसरे तथा तीसरे पदानुक्रम के लिए रोमन लिपि के 17 छोटे अक्षरों का प्रयोग किया जिनमें प्रमुख निम्नवत है :-
f = वर्ष भर वर्षा /आर्द्र
m = मानसूनी प्रचुर वर्षा
w = शीतकाल शुष्क
s = ग्रीष्म काल शुष्क
a = ग्रीष्म ऋतु / गर्म
b = शीतल ग्रीष्म ऋतु
c = लघु कालीन शीतल ग्रीष्म ऋतु
d = औसत मासिक तापमान 3.8℃ से कम नहीं
h = औसत वार्षिक तापमान 18℃ से अधिक
i = वार्षिक तापांतर 5℃ से कम
k = औसत वार्षिक तापमान 18℃ से कम
उपरोक्त सांकेतिक अक्षरों का प्रयोग करते हुए विश्व को प्रथम पदानुक्रम में 6 द्वितीय पदानुक्रम में 13 और तृतीय पदानुक्रम में 23 या उससे अधिक भागों में प्रस्तुत किया है। तीसरे स्तर में संख्या नियत / निश्चित नहीं है। इसलिए प्रथम और द्वितीय पदानुक्रम तक ही विशेष मान्यता रखता है। कोपेन के द्वारा प्रस्तुत जलवायु वर्गीकरण की योजना को नीचे की तालिका में देखा जा सकता है।
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की योजना
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की आलोचना
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की कई आधार पर आलोचना की गई है जैसे -
◆ कोपेन के वर्गीकरण को डी. कैंडोल के वनस्पति वर्गीकरण का प्रतिलिपि माना जाता है।
◆ कोपेन अपना वर्गीकरण कई बार प्रस्तुत किया। 1936 में प्रस्तुत वर्गीकरण भी पूर्ण नहीं था इसलिए पुनः इसमें संशोधन कर 1948 (कोपेन तथा उनके मित्र) में प्रस्तुत किया।
◆ इनका वर्गीकरण अनुभावाश्रित विधि पर आधारित है अर्थात वैज्ञानिक तथ्यों की कमी के कारण गलत परिणाम आ सकते हैं।
◆ इन्होंने अपना जलवायु वर्गीकरण हेतु वनस्पति, तापमान, वर्षा और उच्चावच इत्यादि को आधार माना लेकिन जलवायु के अन्य घटकों को उन्होंने नजरअंदाज किया। जबकि वे घटक भी जलवायु को प्रभावित करते हैं। जैसे - वायु की दिशा, वायुदाब, वायुमंडलीय दृश्यता, पृथ्वी की परिभ्रमण गति, समुद्री जलधारा जैसे कारकों का महत्व नहीं दिया।
◆ इन्होंने अपना जलवायु वर्गीकरण में कई सांकेतिक अक्षरों का प्रयोग किया जिससे वर्गीकरण के जटिल होने का आभास होता है।
◆ कुछ जलवायुविज्ञानवेता इनके वर्गीकरण को अति सरल रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाता है।
◆ थार्नथ्वेट ने इनका आलोचना करते हुए कहा है कि कोपेन महोदय ने अपने वर्गीकरण में तापमान एवं वर्षा की मात्रा को वर्गीकरण का आधार माना है जबकि वास्तव में वर्षा एवं तापमान के प्रभावोत्पादकता पर वर्गीकरण किया जाना था।
◆ कोपेन के जलवायु वर्गीकरण में दो जलवायु पेटी के बीच बनने वाले संक्रमण पेटी का भी उल्लेख नहीं किया है जबकि वास्तव में एक जलवायु प्रदेश की सीमा समाप्त होते है तो अचानक ही दूसरी जलवायु क्षेत्र प्रारंभ नहीं होती बल्कि दोनों के बीच एक संक्रमण पेटी का निर्माण होता है।
निष्कर्ष
उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद कई अन्य गुण भी है जिसकी चर्चा विशेषता रूपी शीर्षक के अंतर्गत किया गया है। उन विशेषताओं के अलावे जलवायु वर्गीकरण की दिशा में किया गया यह पहला प्रयास था। कोपेन ने जिन आधारों पर अपना जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया वही आधार कुछ संशोधन कर अपना वर्गीकरण को प्रस्तुत करते रहे उपरोक्त गुणों के कारण इनके जलवायु वर्गीकरण को आज भी विशेष मानता प्राप्त है।
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