1. Structure of Ecosystem

1. Structure of Ecosystem

(पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना)

प्रश्न प्रारूप
1. पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना का वर्णन कीजिए।
प्रत्येक पारिस्थितिकी तन्त्र की संरचना में पाए जाने वाले समस्त घटकों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता-

(1) जैविक तत्व (Biotic Elements) तथा
(2) अजैविक तत्व (Abiotic Elements)
(1) जैविक तत्व (Biotic Elements)
                              पारिस्थितिकी तन्त्र के जैविक तत्वों में पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं की आबादी (Population) के समुदाय (Community) होते हैं। ये सभी जीव आपस में किसी-न-किसी प्रकार से एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। इन जीवों में परस्पर सम्बन्धों का मुख्य आधार भोजन है। अतः इन जीवों के भोजन प्राप्त करने के प्रकार के अनुसार जैविक तत्व को दो भागों में विभक्त किया गया है :-
(i) स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophic or Producers) - पारिस्थितिकी तन्त्र में जो जीव साधारण अकार्बनिक पदार्थों को ग्रहण कर सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया कर भोजन का निर्माण करते हैं, उन्हें स्वपोषी घटक (Autotrophic Component) कहते हैं। ये जीव अपने पोषण हेतु स्वयं भोजन का निर्माण करते हैं। स्थल पर उगने वाले सभी पौधे तथा जल में विद्यमान जलोद्भिद पौधे, शैवाल व सूक्ष्मदर्शी पौधे स्वपोषी जीवों के अन्तर्गत आते हैं। ये समस्त जीव कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं जिसका उपयोग अन्य जीव प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से भोजन रूप में करते हैं। ये अपना भोजन स्वयं विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा प्रकृति में मूल रूप में प्राप्य गैस व प्रकाश के माध्यम से सर्वप्रथम उत्पादित करते हैं, इसलिए उत्पादक (Producer) जीव कहलाते हैं।
(ii) परपोषित घटक अथवा उपभोक्ता (Heterotrophic or Consumers) - पारिस्थितिकी तन्त्र में वे जीव जो प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से ऊपर वर्णित उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन पर निर्भर रहते हैं, परपोषित अथवा उपभोक्ता जीव कहलाते हैं। वस्तुतः वनस्पति उत्पादक है और हर जीव उपभोक्ता है। इन उपभोक्ता जीवों को पुनः दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है :- 

(अ) वृहत् या गुरु उपभोक्ता (Macro Consumers) तथा

(ब) सूक्ष्म या लघु उपभोक्ता (Micro Consumers)
(अ) वृहत् या गुरु उपभोक्ता (Macro Consumers) - पारिस्थितिकी तन्त्र में वे जीव जो अपना भोजन पौधों तथा जन्तुओं से प्राप्त करते हैं, वृहद् उपभोक्ता या भक्षकपोषी (Phagotroph) या बायोफेगस (Biophages) कहलाते हैं। ये उपभोक्ता जीव भोजन को ग्रहण कर अपने शरीर के अन्दर उसका पाचन करते हैं। शाकाहारी जीव अपने पोषण के लिए पौधों पर निर्भर रहते हैं; जैसे वन में हिरण भोजन के लिए प्रत्यक्ष रूप से पौधों पर निर्भर होता है तथा शेर अपने भोजन के लिए हिरण को खाता है। यहां पर हिरण और शेर दोनों ही उपभोक्ता हैं लेकिन हिरण अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष रूप से पेड़-पौधों पर निर्भर है जबकि शेर अप्रत्यक्ष रूप से। अतः इन उपभोक्ताओं की श्रेणियां अलग-अलग हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं को भी तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है :-

(1) प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता या प्राथमिक उपभोक्ता (Consumers of First Order)
(2) द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या द्वितीयक उपभोक्ता (Consumers of Second Order)
(3) तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता या तृतीयक उपभोक्ता (Consumers of Third Order)

(1) प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता या प्राथमिक उपभोक्ता (Consumers of First Order or Primary Con- sumers) - वे जीव जो भोजन की प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष रूप से हरे पौधों या स्वपोषी जीवों पर निर्भर होते हैं, प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं। ये मुख्य रूप से शाकाहारी (Herbivores) होते हैं। स्थलीय पारिस्थितिकी तन्त्र में रोडेण्ट्स (Rodents), कीट, गाय, भैंस, बकरी, खरगोश, भेड़, हिरण, चूहा इत्यादि प्राथमिक उपभोक्ता हैं। इसी प्रकार प्रोटोजोआ (Protozoans), क्रस्टेशियन्स (Crustaceans) व मोलस्कस (Molluscus) समुद्रों तथा तालाबों के प्राथमिक उपभोक्ता हैं।
(2) द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या द्वितीयक उपभोक्ता (Consumers of Second Order or Secondary Con- sumers) - इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्रथम श्रेणी के शाकाहारी उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं। ये प्रायः मांसाहारी (Cornivores) या सर्वाहारी (Omnivores) होते हैं। जैसे- कौआ, मेंढक, लोमड़ी, कुत्ता, सांप, बिल्ली, आदि।
(3) तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता या तृतीयक उपभोक्ता (Consumers of Third Order or Tertiary Con- sumers) - इस श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्राथमिक एवं द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ताओं से प्राप्त करते हैं। ये उपभोक्ता सर्वाहारी जीवों का भी भक्षण करते हैं। पारिस्थितिकी तन्त्र में इस श्रेणी के अन्तर्गत वे ही जीव आते हैं जो स्वयं तो अन्य मांसाहारी जीवों को खा जाते हैं, किन्तु उन्हें कोई जीव नहीं खा सकता। इस प्रकार के उपभोक्ताओं को उच्च मांसाहारी या उपभोक्ता (Top consumers) कहा जाता है, जैसे- शेर, चीता, बाज (Hawk), गिद्ध (Vulture), इत्यादि। इन्हें सर्वोच्च (Top) या अन्तिम उपभोक्ता भी कहा जाता है क्योंकि इनका उपभोग करने वाला कोई अन्य जीव नहीं होता है।
(ब) सूक्ष्म या लघु उपभोक्ता (Micro Consumers) -  पारिस्थितिकी तन्त्र के लघु उपभोक्ताओं में कवक (Fungi ), जीवाणु (Bacteria) तथा मृतोपजीवी (Saprotrophs) होते है, इन्हें अपघटक (Decomposers) वा आस्माट्राप्स (Osmotrophs) भी कहते हैं। ये जीव उत्पादक तथा उपभोक्त जीवों के मृत शरीरों पर क्रिया कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण पदार्थों में परिवर्तित करते हैं। इस प्रक्रिया में ये स्वयं अपना पोषण करते हैं और अकार्बनिक पदार्थ पुनः उत्पादक हरे पौधों द्वारा उपयोग में ले लिए जाते हैं। ये अपघटक पारिस्थितिकी तन्त्र के अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(2) अजैविक तत्व (Abiotic Elements)
                            पारिस्थितिकी तन्त्र के अजैविक तत्वों में वे समस्त भौतिक कारक आते हैं जो जीवों के जीवन को बनाए रखते हैं। इन तत्वों का निर्माण भौतिक पर्यावरण की शक्तियों और प्रक्रियाओं से हुआ है। इन तत्वों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
(i) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances) - अकार्बनिक पदार्थों के अन्तर्गत मिट्टी, जल, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, आदि सम्मिलित हैं। जल और मिट्टी के माध्यम से इन अकार्बनिक पदार्थों का पारिस्थितिकी तन्त्र में चक्रीकरण होता है।
(ii) कार्बनिक पदार्थ (Organic Substances) -  इसमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ह्यूमस, क्लोरोफिल, लिपिड इत्यादि होते हैं।
(iii) जलवायविक कारक (Climatic Factors) - इसमें सौर प्रकाश, तापमान, आर्द्रता, पवन, वर्षा, इत्यादि भौतिक तत्व महत्वपूर्ण हैं। इन सभी भौतिक तत्वों में सौर ऊर्जा पारिस्थितिकी तन्त्र की क्रियाशीलता के लिए अति आवश्यक होती है।

No comments

Recent Post

11. नगरीय प्रभाव क्षेत्र

11. नगरीय प्रभाव क्षेत्र नगरीय प्रभाव क्षेत्र⇒            नगर प्रभाव क्षेत्र का सामान्य तात्पर्य उस भौगोलिक प्रदेश से है जो किसी नगर के सीमा...