1. The Indus - Ganga- Brahmaputra Plain (सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान)
1. The Indus - Ganga- Brahmaputra Plain
(सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान)
प्रश्न प्रारूप
सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान के प्रमुख भू-आकृतिक स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
हिमालय पर्वत तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के बीच सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों की निक्षेप क्रिया द्वारा निर्मित एक विशाल मैदान स्थित है, जिसे सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान कहा जाता हैं। भारत के उत्तरी भाग में स्थित होने के कारण इसे उत्तरी भारत का मैदान भी कहते हैं। गंगा और सिन्धु नदियों के मुहाने के बीच पूर्व-पश्चिम दिशा में इसकी लम्बाई लगभग 3,200 किमी तथा चौड़ाई 150 से 300 किमी है। असम में यह मैदान संकरा है और यहां इसकी चौड़ाई 90 से 100 किमी है। यह मैदान पूर्व से पश्चिम की ओर चौड़ा होता जाता है। राजमहल की पहाड़ियों के पास इसकी चौड़ाई 160 किमी है जो बढ़कर प्रयागराज के निकट 280 किमी हो जाती है। इस मैदानी भाग में नदियों द्वारा तलछट के निरन्तर निक्षेपण से जलोढ़ की बहुत ही मोटी परतें जम गई हैं। अधिकांश भाग पर जलोढ़ की मोटाई 2,000 मीटर तक पायी गई है। उच्चावच की दृष्टि से इस मैदानी भाग का विवरण निम्नलिखित है :
(i) भाबर प्रदेश (Bhabar Region ) - भाबर प्रदेश शिवालिक के गिरिपाद प्रदेश में सिन्धु नदी से तिस्ता नदी तक पाया जाता है। यह प्रदेश 8 से 16 किमी चौड़ाई वाली संकरी पट्टी के रूप में स्थित है। गिरिपाद पर स्थित होने के कारण इस क्षेत्र में नदियां बड़ी मात्रा में पत्थर, कंकर, बजरी आदि लाकर जमा कर देती हैं जिससे पारगम्य चट्टानों का निर्माण होता है। अतः इस क्षेत्र में पहुंचकर अनेक छोटी-छोटी नदियां भूमिगत होकर अदृश्य हो जाती हैं। यह प्रदेश कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं है।
(ii) तराई प्रदेश (Terai Region) - यह भाबर के दक्षिण में वह मैदानी भाग होता है, जहां भाबर की लुप्त नदियां फिर से भूमि पर प्रवाहित होती हुई दिखाई देने लगती हैं। इसे ही तराई प्रदेश कहते हैं। नदियों द्वारा निक्षेपित जलोढ़ के कण भाबर प्रदेश की तुलना में यहां अपेक्षाकृत महीन होते हैं फलस्वरूप तराई प्रदेश में दलदल की अधिकता होती है। इसकी चौड़ाई 20 से 30 किमी होती है। दलदल तथा नमी की अधिकता के कारण तराई प्रदेश में घने वन तथा विविध प्रकार के वन्य जीव पाये जाते हैं। उत्तरी भारत के अधिकांश राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभयारण्य तराई प्रदेश में ही हैं।
(iii) बांगर प्रदेश (Bangar Region ) - बांगर प्रदेश मैदान का वह ऊंचा भाग होता है जहां नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंचता है। यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी द्वारा बना होता है। इसमें कंकड़ के रूप में चूनायुक्त संग्रहों की अधिकता होती है। यह प्रदेश कृषि के लिए अधिक उपयोगी नहीं है। पंजाब के मैदान में बांगर को 'धाया' कहते हैं।
(iv) खादर प्रदेश (Khadar Region) - खादर प्रदेश वह नीचा भाग है जहां नदियों की बाढ़ का जल प्रति वर्ष पहुंचता है। बाढ़ के जल के साथ नवीन मिट्टी भी इस प्रदेश में बिछती रहती है, अतः खादर प्रदेश का निर्माण नवीन जलोढ़ द्वारा होता है। खादर प्रदेश अत्यधिक उपजाऊ होते हैं और यहां गहन खेती की जाती है। पंजाब के मैदान में खादर प्रदेश को 'बेट' कहते हैं।
(v) रेह (Reh) - बांगर मिट्टी के उन क्षेत्रों में जहां सिंचाई कार्यों की अधिकता है, वहां पर कहीं-कहीं भूमि पर एक नमकीन सफेद परत बिछी हुई पायी जाती है। सफेद परत वाली इस मिट्टी को 'रेह या कल्लर' के नाम से पुकारते हैं। उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शुष्क भागों में इसका विस्तार सबसे अधिक है।
(vi) भूड (Bhur) - बांगर मिट्टी के उन क्षेत्रों में जहां आवरण क्षय के फलस्वरूप ऊपर की मुलायम मिट्टी नष्ट हो गई है वहां अब कंकरीली ऊंची भूमि मिलती है। ऐसी भूमि को भूड़ कहते हैं। गंगा और रामगंगा नदियों के प्रवाह क्षेत्रों में भूड़ का जमाव विशेष रूप से पाया जाता है।
(vii) शंकु तथा अन्तःशंकु (Cones and Inter cones) - इस विशाल मैदान में नदियों के निक्षेपण के परिणामस्वरूप जलोढ़ पंख अथवा शंकु तथा अन्तः शंकुओं का निर्माण हुआ है। हिमालय की घाघरा नदी को छोड़कर बाकी सभी नदियों ने जलोढ़ शंकुओं का निर्माण किया है। इन शंकुओं का आधार दक्षिण में मैदान की तरफ तथा शीर्ष पहाड़ियों से नदी के निकास बिन्दु की तरफ होता है। इनका तल उत्तल (Convex) होता है। अन्तः शंकुओं का आकार इसके ठीक विपरीत होता है और इसके किनारे अवतल (Concave) होते हैं। निक्षेप के विस्तार के साथ-साथ शंकु एवं अन्तः शंकुओं के कुछ स्थानों पर आपस में मिलने से शंकु-पाद मैदानों (Cone-foot Plains) का निर्माण हुआ है। हिमालय की अधिकांश नदियों ने सामान्य शंकु बनाये हैं जबकि व्यास रावी एवं महानन्दा तिस्ता नदियों ने मिश्रित शंकुओं (Composite cones) का निर्माण किया है। उत्तरी बिहार में गंडक और कोसी, झारखण्ड में महानन्दा और तिस्ता नदियों ने बड़े पैमाने पर शंकुओं का निर्माण किया है। ये शंकु एक-दूसरे से अन्तः शंकुओं द्वारा विभाजित हैं।
(viii) डेल्टा (Delta) - गंगा तथा सिन्धु नदियों के डेल्टा इस मैदानी भाग के दो महत्वपूर्ण संरचनात्मक अंग हैं। गंगा का डेल्टा राजमहल की पहाड़ियों से सुन्दरवन के किनारे तक 430 किमी की लम्बाई में फैला हुआ है। इसकी चौड़ाई 480 किमी है। गंगा के डेल्टा में तलछट के निक्षेप की मात्रा अधिक तथा अत्यधिक गहराई तक विद्यमान है। इस डेल्टा में निक्षेपित तलछट के कण बहुत ही महीन हैं। सिन्धु नदी का डेल्टा यद्यपि 960 किमी लम्बा है किन्तु इसकी चौड़ाई 160 किमी ही है। सिन्धु नदी के डेल्टा में तलछट के निक्षेप की मात्रा और गहराई भी कम है। इस डेल्टा में निक्षेपित तलछट के कण भी अपेक्षाकृत मोटे हैं।
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