ग्रामीण बस्तियों में पर्यावरणीय मुद्दे
ग्रामीण बस्तियों में पर्यावरणीय मुद्दे
वह भौगोलिक स्थान जहाँ मानव सामूहिक रूप से अधिवास करता है, उस स्थान को बस्ती कहते हैं। सार्वभौमिक परिभाषा अनुसार जिस अधिवासीय बस्ती की 2/3 जनसंख्या प्राथमिक कार्य में संलग्न हो, उस अधिवासीय बस्ती को ग्रामीण बस्ती कहते हैं। किसी भी प्रकार के बस्ती के विकास पर भौतिक एवं सांस्कृतिक कारकों का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि भौतिक पर्यावरण ही ग्रामीण बस्ती के प्रकार, प्रतिरूप तथा उसके आन्तरिक संरचना एवं अन्य विशेषताओं को प्रभावित करती हैं। लेकिन बदलते पर्यावरण के कारण आज की ग्रामीण-बस्तियाँ भी किसी भी प्रकार के बदलाव से अछूते नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में नगरों के भाँति ही अनेक प्रकार के पर्यावरणीय समस्याओं को देखा जा सकता है। जैसे :-
(1) भूमिगत जलस्तर का ह्रास - ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल एवं सिंचाई का सबसे बड़ा जलस्रोत भूमिगत जल रहा है। आज हरित क्रांति, सघन कृषि इत्यादि के कारण भूमिगत जलस्रोत का दोहन किसानों के द्वारा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है जिसका परिणाम है कि भूमिगत जलस्तर का ह्रास हो रहा है। मरुस्थलीय क्षेत्र एवं पठारी क्षेत्र के ग्रामीण बस्तियों में यह समस्या अति गंभीर रूप धारण कर चुका है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर के ह्रास में कमी का प्रमुख कारण भूमिगत जल का रिचार्ज करने वाले जलस्रोत का समाप्त हो जाना है। इसके अलावे वनों के तीव्र कटाव के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है। वनीय कटाव के कारण वर्षा में अनियमितता उत्पन्न होता है अर्थात कभी अतिवृद्धि तो कभी अनावृष्टि की समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न होती है। अनावृष्टि के दौरान जल का अभाव हो जाता है, वहीं अतिवृष्टि के दौरान सभी जलस्रोत प्रदूषित हो जाते हैं जिसके कारण पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न होती है।
(2) मृदा लवणीकरण की समस्या - ग्रामीण क्षेत्रों में सतही सिंचाई के कारण मिट्टी के B स्तर के लवण जल के साथ घुलकर मिट्टी के ऊपरी भाग में आने की प्रवृति रखते हैं, जिसके कारण मृदा लवणीकरण की गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। विश्व के शुष्क एवं उपार्द्र क्षेत्रों में यह एक गंभीर समस्या उभरकर सामने आयी है।
(3) प्रदूषण की समस्या - प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं। जैसे - वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, और आण्विक प्रदूषण इत्यादि। ग्रामीण लोग आज भी अधिकांश ऊर्जा की जरूरत जीवाश्म ऊर्जा से प्राप्त करते हैं जिससे बड़े पैमाने पर धुआं और प्रदूषक पदार्थ वलुमण्डल में मिलते रहते है, जिसके कारण वायु का प्रदूषण तेजी से हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल जैसे नवीन परिवहन साधन के आगमन से ग्रामीण वायु भी स्वच्छ नहीं रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में घूँआ से युक्त प्रदूषित वायु को शीत ऋतु में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वर्षा ऋतु में ग्रामीण बस्तियाँ नरक का रूप धारण कर लेती है क्योंकि ग्रामीण लोग घर से निकलने वाले कचड़े को घर के पास ही जमा रखते हैं। शौच इत्यादि के लिए शौचालय का प्रयोग न कर खुले स्थानों का प्रयोग करते है। मृत जानवरों को गाँव के खुले स्थानों पर ही फेंक आते हैं। ग्रामीण गलियाँ एवं सड़क कच्चे होने के कारण और उसमें जानवरों के मल-मूत्र मिल जाने के कारण दुर्गन्ध उत्पन्न होने लगती है। उपरोक्त कारणों के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में वायु एवं जल दोनों के प्रदूषित होते हुए देखा जा सकता है।
(4) ध्वनि प्रदूषण - आधुनिक ग्रामीण बस्तियाँ भी सूचना क्रांति के दौर से पीछे नहीं है। रात-दिन सिंचाई के लिए चलने वाले फिटर, थ्रेसर मशीन, क्रेसर मशीन, सुबह-शाम मंदिरों के ऊपर बजने वाले लाउड्सपीकर, मस्जिदों के ऊपर लगे लाउड्सपीकर, ग्रामीण क्षेत्र का सांस्कृतिक वातावरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण होता रहता है।
(5) नाभिकीय प्रदूषण - आधुनिक युग में ऊर्जा की उपलब्धता बढ़ाने हेतु नाभिकीय ऊर्जा पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है, जिन-2 स्थानों पर नाभिकीय संयंत्र स्थापित है उन संयंत्रों के पास स्थित ग्रामीण बस्तियों में नाभिकीय प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो रही है।
(6) जल प्रदूषण - ग्रामीण बस्तियाँ जल के लिए मुख रूप से दो श्रोतों पर निर्भर करती है। पहला भूमिगत जलस्रोत दूसरा सतही जलस्रोत। भूमिगत जल स्रोत की चर्चा ऊपर की जा चुकी है। यहाँ सतही जलस्रोत की चर्चा की जा रही है। पोखर, तालाब, नदी, झील, बड़े-2 प्राकृतिक और कृत्रिम रूप से निर्मित गर्त में जमा पानी सतही जलस्रोत का कार्य करती है। खेतों में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों का प्रयोग, जल स्रोत के पास मल त्याग का प्रयास, जलस्रोत में ही स्नान करने के दौरान डिटर्जेन्ट का प्रयोग, पशुओं को जलाशय में ले जाकर स्नान कराना इत्यादि आम बात है। इसके चलते सतही जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं। ऐसे प्रदूषित जल ग्रामीण क्षेत्रों में जल जनित बीमारी, महामारी इत्यादि को जन्म देते हैं।
(7) वन हाल की समस्या - ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन, विभिन्न प्रकार के कृषि कार्य, गृह निर्माण एवं अन्य कार्यों में बड़े पैमाने पर वृक्ष की आवश्यकता पड़ती है। इस आवश्यकता की पूर्ति करने हेतु ग्रामीण लोग अपने गाँव के इर्द-गिर्द उपस्थित वृक्ष को काटकर तात्कालिक रूप से प्रयोग में लाने का कार्य करते हैं। वृक्ष को पर्यावरण "लंगस्" कहा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि वनस्पति जलवायु का निर्धारक होता है। आज वनीय हास के कारण जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापन इत्यादि की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में ओजोन क्षरण के प्रभाव को वनस्पति एवं पशुओं के ऊपर देखा जा सकता है। समय-2 पर अम्ल वर्षा, बादल फटना, अत्याधिक तड़ित झंझा का गिरना इत्यादि पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो रही है।
निष्कर्ष
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि आज ग्रामीण क्षेत्र के पर्यावरण भी अछूते नहीं रहे हैं जिसका परिणाम यह हो रहा है, कि आज विश्व की ग्रामीण बस्तियाँ न केवल परम्परागत समस्याओं को झेल रही है बल्कि उन्हें आधुनिक पर्यावरणीय समस्याओं से भी झेलना पड़ रहा है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि समय रहते संपोषणीय ग्रामीण विकास की योजनाओं का निर्माण कर ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया जाए और ग्रामीण वातावरण को सुरक्षित रखा जाय।
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 
 
 
 
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