5. Hierarchy of Urban Settlements / नगरीय बस्तियों का पदानुक्रम

 5. Hierarchy of Urban Settlements

(नगरीय बस्तियों का पदानुक्रम)

             नगरीय बस्तियों का विकास केन्द्रीय स्थल से प्रारंभ होता है। लेकिन सभी भौगोलिक प्रदेश में विकसित होने वाले केन्द्रीय बस्ती या स्थल समान रूप से केन्द्रीयता नहीं रखता है। अत: केन्द्रीय स्थलों की कार्य और जनसंख्या आकार में भिन्नता होती है। इन्हीं विभिन्नताओं के आधार पर कई भूगोलवेताओ ने नगरों के पदानुक्रम को निर्धारित करने का प्रयास किया है। कार्य के दृष्टिकोण से नगरीय पदानुक्रम के निर्धारण का कार्य 1933ई० में क्रिस्टॉलर महोदय ने किया था। उन्होंने षष्टकोणीय मॉडल के आधार पर नगरों का सात पदानुक्रम निर्धारित किया था। उन्होंने एक ही पदानुक्रम के दो नगरों के बीच की समान दूरी भी निर्धारित किया था। जैसे:-

पदानुक्रम                                    नाम                                दूरी (km)

1.                                        कस्बा बाजार                          7

2.                                         शहर                                      12

3.                                         काउन्टी केन्द्र                          21

4.                                         जिला नगर                              36

5.                                        राज्यों की राजधानी                  62

6.                                        प्रान्तीय नगर                            108

7.                                         प्रादेशिक राजधानी नगर           186

                                क्रिस्टॉलर ने प्रथम पदानुक्रम सें सबसे छोटे नगर को शामिल किया और अंतिम पदानुक्रम में सबसे बड़े नगर को रखा है। बाद में लॉश, फिलब्रिक, बेरी, गैरीसन जैसे- भूगोलवेताओं ने क्रिस्टॉलर के विधितंत्र की आलोचना की। लेकिन नगरों को पदानुक्रमिक विकास पर सहमति जताया।

                         पेरॉक्स & बोडोविले ने प्रादेशिक नियोजन के अन्तर्गत कार्यों के आधार पर केन्द्रीय स्थल की विकसित होने की चार पदानुक्रम निर्धारित किये हैं -

(1) विकास ध्रुव

(2) विकास केन्द्र

(3) विकास बिन्दु 

(4) सेवा केन्द्र

                  बोडोबिले के अनुसार विकास ध्रुव वह नगर है जहाँ पर सर्वाधिक सेवा कार्य किये जाते हैं। जबकि सेवा केन्द्र वैसा नगर है जहाँ पर सबसे कम सेवा का कार्य होता है।

                     विभिन्न देशों के जनगणना विभाग भी नगरों के पदानुक्रम का निर्धारण करने का प्रयास करती है। ब्रिटिश औपनिवेशिक देशों में जनसंख्या के आधार पर नगरों का 6 पदानुक्रम निर्धारित किया गया है -

पदमुक्रम                    जनसंख्या

1.                             1 लाख या उससे अधिक 

2.                             50,000 - 99,999

3.                             20000 - 49 999

4.                             10000 - 19999 

5.                             5000 - 9999                            

6.                             5000 से कम 

            एक लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर को सामान्य तौर पर महानगर कहा जाता है। लेकिन वर्तमान समय में 10 लाख या उससे अधिक जनसंख्या रखने वाले नगर महानगर और 50 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर को मेगा सिटी कहा जाता है। 

              कई भूगोलवेताओं ने सांख्यिकी विधि के द्वारा कोटि आकार नियम विकसित किया है। इस संदर्भ में जेफर्सन, जिप्स, स्टीवर्ट, रेड्डी इत्यादि का कार्य विशेष महत्व है।

          अधिकतर विद्वानों ने बताया है कि नगर की आकार और उसके कोटि (पदानुक्रम) के बीच व्युत्क्रमानुपाती संबंध पाया जाता है। जिप्स ने नगरों का कोटि-आकार का संबंध स्थापित करने के लिए कुछ सांख्यिकीय मान निर्धारित की। जैसे-

            1, 0.5, 0.333, 0.250 तथा 0.200 उपयुक्त सांख्यिकी मान जिन नगरों के छोटि- आकार पर लागू होता है, वहाँ पर इससे ज्ञात 'होता' है कि स्वस्थ्य नगरीय पानुक्रम का विकास

            कई भारतीय भूगोलवेताओं ने भी नगरीय पदानुक्रम को निर्धारित करने का प्रयास किया है। जैसे- 1955ई० में राम लोचन सिंह बनारस प्रदेश के नगरीय पदानुक्रम का निर्धारण किया। उन्होंने बताया कि यहाँ पर नगरों का विकास चार पदानुक्रम में हुआ है।

(1) नगर

(2) उपनगर

(3) बड़ा कस्बा 

(4) छोटा कस्बा

                  राम लोचन सिंह के द्वारा निर्धारित पदानुक्रम कार्यों के आधार पर किया गया था। पुन: 1951ई० की जनगणना को मानते हुए 1969ई० में डॉ० काशीनाथ सिंह ने मध्य गंगा के मैदानी भाग के नगरों का पदानुक्रम निर्धारित किया। उन्होंने मध्य गंगा के मैदानों के नगरों को 6 पदानुक्रम विभाजित किया है :-

(1) प्रादेशिक राजधानी नगर

(2) प्रादेशिक नगर

(3) मध्य आकार के नगर

(4) स्थानीय नगर

(5) ग्रामीण सह नगरीय केन्द्र-

(6) ग्रामीण बाजार

          प्रो० R. P. मिश्रा ने निभोजन कार्यों के संबंध में बोडोविले का सहारा लेते हुए नगरों का पाँच पदानुक्रम निर्धारित किया  इसी तरह कोटि-आकार नियम का सहारा लेते हुए N.B. रेड्‌डी आन्ध्रप्रदेश के S.R. पाटिल कर्नाटक के ओम प्रकाश सिंह उत्तर प्रदेशके नगरों का पदानुक्रम निर्धारित किया भारत के जनगणना विभाग काशीनाथ सिंह के द्वारा निर्धारित 6 पदानुक्रम को मान्यता प्रदान करती है।

              नगरीय बस्तियों का पदानुक्रमिक अध्ययन प्रदेशिक नियोजन के संदर्भ में अति आवश्यक है। इस अध्ययन से उन नगरों की पहचान की जा सकती है जो कार्य और जनसंख्या के दबाव में है। अत: ऐसे नगरों में प्रादेशिक संसाधन और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर अनुकूल पदानुक्रम विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है।

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