जलचक्र /HYDROLOGIC CYCLE

जलचक्र
(HYDROLOGIC CYCLE)


जलचक्र :- जल चक्र क्रिया हमारे वायुमंडल एवं पृथ्वी तंत्र की महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके अंतर्गत पार्थिव जल सतत स्थान एवं अवस्था में परिवर्तन लाते रहते हैं। अवस्था परिवर्तन  वाले जल चक्र को नीचे के मॉडल में देखा जा सकता है।

              जलचक्र में स्थान परिवर्तन जलवायु विज्ञान में विशेष महत्व रखता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी की सतह से जल का गैसीय स्थानांतरण वायुमंडल में होता है। जब वायुमंडल की वायु संतृप्त हो जाती है और तापमान ओसांक बिंदु के नीचे चला जाता है तो पहले बादल उसके बाद जलबूँद एवं हिमकण का निर्माण होता है। ये जलबूँद एवं हिमकण वर्षण की क्रिया से पुनः धरातल पर गिरते हैं और जल स्रोतों में समाहित हो जाते हैं। इस तरह पृथ्वी के धरातलीय जल का वायुमंडल में जाना और वायुमंडल से पुनः धरातल की ओर  भौगोलिक जलचक्र कहलाता है।

     जलचक्र के अंतर्गत जलीय अधिवास में सतत परिवर्तन होता है। लेकिन पृथ्वीतंत्र में अवस्थित जलीय अधिवासों में जल की मात्रात्मक अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जैसे 97% जल महासागरों में स्थित है जबकि 3% भाग महाद्वीपों पर स्थित है।

           स्थलीय जल अधिवास में भी सन्तुलन की स्थिति कायम रहती है। स्थलीय जल का तात्पर्य स्वच्छ जल से है। जलचक्र के बावजूद इसका निश्चित अधिवासीय वितरण इस प्रकार से है :-



MTC के अनुसार (1971) जल के प्रमुख स्रोत आधिवासीय क्षेत्र है। इन आधिवासीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न अवधि तक अधिवासित होते हैं। इन अधिवासित क्षेत्रों के जल भी जलचक्र में भाग लेते हैं। अधिवासीय समय को नीचे के तालिका में देखा जा सकता है :-


               इस तरह ऊपर के तथ्यों/तालिका से स्पष्ट है कि अलग-अलग 
अधिवासीय क्षेत्र के जल अलग-अलग समय तक अधिवासित होते हैं। जलवायु विज्ञानवेताओं ने पृथ्वीतंत्र में चलने वाला जलचक्र को 5 वर्गों में बाँटा है :-

(i) वायुमंडलीय जलचक्र क्रिया
(ii) बाधित जलचक्र क्रिया
(iii) लघु जलचक्र क्रिया
(iv) लंबित जलचक्र क्रिया
(v) सामान्य जलचक्र क्रिया

(i) वायुमंडलीय जलचक्र क्रिया
                      वायुमंडल में बादल तैराव की स्थिति में होते हैं। जब उसका तापमान ओसांक बिंदु के नीचे जाता है तो जलबूँद के रूप में तब्दील होकर धरातल पर आने का प्रयास करते हैं लेकिन वायुमंडलीय जलचक्र में जलबूँद पृथ्वी के धरातलीय सतह पर नहीं पहुँच पाते। सूर्य के तापीय प्रभाव में आकर वर्षा के जल वाष्प के रूप में बदलकर पुनः बादल के रूप में तब्दील कर जाते हैं। चूँकि यह संपूर्ण क्रिया वायुमंडल में चलती रहती है इसीलिए इसे वायुमंडलीय जलचक्र क्रिया कहते हैं।
(ii) बाधित जलचक्र क्रिया
              जब समुद्र का वाष्पीकृत जल वायुमंडल में पहुँचता है और संघनित होकर बादल का निर्माण करता है तथा पुनः बादल से जलबूँद या हिमकण स्थलखंड पर वर्षण के रूप में पहुँचते हैं। लेकिन वर्षण के ये जलबूँद या हिमकण पुनः समुद्र में न पहुँचकर मृदा या वनस्पति में समाहित हो जाते हैं। चूँकि यह स्रोत तक नहीं पहुँच पाते हैं और वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल वायुमंडल में आ जाते हैं। इसीलिए इसे बाधित जलचक्र कहते है।

(iii) लघु जलचक्र क्रिया
           विषुवतीय क्षेत्रों में प्रतिदिन समुद्र का जल वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में पहुँचता है और दोपहर के बाद संघनित होकर पुनः धरातल या समुद्री सतह पर वर्षा के रूप में लौट आता है। ऐसे जलचक्र को ही लघु जलचक्र क्रिया कहते हैं।

(iv) लंबित जलचक्र क्रिया
                     जिस जलचक्र में वर्षण का जल ध्रुवीय हिमानी या भूमिगत जल का अंग बन जाता है तो वैसी स्थिति में जल लंबे समय तक हिमानी या भूमिगत जल के रूप में अधिवासित होते हैं। ऐसे ही जलचक्र को लंबित जलचक्र किया कहते हैं।

(v) सामान्य जलचक्र क्रिया
                     सामान्य जलचक्र में समुद्री जल वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में पहुँचता है यह जलवाष्प संघनित होकर पहले बादल का निर्माण करता है। उसके बाद संघनित होकर जलबूँद के रूप में स्थल पर गिरता है। पुनः यहाँ से जल अपवाह तंत्र के माध्यम से समुद्र तक पहुँच जाता है ऐसे ही जलचक्र को सामान्य जलचक्र कहते हैं।

निष्कर्ष
         इस तरह ऊपर के तथ्यों  से स्पष्ट है कि जलचक्र हमारे वायुमंडल का प्रमुख घटक है।यही वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आर्द्रता एवं जल का सतत वितरण होता रहता है। इसके अलावा जल के सभी अधिवासीय क्षेत्र में जलीय अनुपात को नियत रखता है। वायुमंडल को स्वच्छ बनाए रखने में मदद करता है। पर्यावरणीय संतुलन को कायम रखता है। अतः जलचक्र रोके जाने वाले किसी कदम को रोका जाना आवश्यक है।







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