14. Concept of Satellite Town (उपनगर या अनुषंगीनगर की सकल्पना)

 14. Concept of Satellite Town

(उपनगर या अनुषंगीनगर की सकल्पना)

              उपनगर का तात्पर्य उस नगरीय बस्ती से है जो किसी वृहद नगर अथवा महानगर के आसपास उसके प्रभाव से विकसित होता है। यह जनसंख्या आकार तथा कार्यिक संरचना के दृष्टि से मुख्य नगर की तुलना में छोटा होता है। यह नगर आर्थिक तथा सामाजिक कार्यों के लिए मुख्य नगर पर निर्भर करता है। ऐसे नगरों को कोई एकाकी अस्तित्व नहीं होता है। 20वीं शताब्दी के दौरान और मुख्यतः द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपनगरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इसके दो प्रमुख कारण हैं-
1. जैविक कारक
2. मानवीय कारक

                 जैविक कारक के अंतर्गत यह माना जाता है कि नगर एक जीवित प्राणी के समान है जैसे आयु वृद्धि के साथ परिवार के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती है उसी प्रकार नगरीय अकार और आयु में वृद्धि होती है तो उपनगर विकसित होते है। मुख्य नगर में जब जनसंख्या घनत्व में भारी वृद्धि हो जाती है तथा भूमि के मूल्य और किराये के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि होने लगती है तो लोग स्वत: मुख्य नगर छोडकर नगर के नजदीक अनुकूल जगह पर बसने लगते है जो अंतत: उपनगर का रूप ले लेता है।

             मानवीय कारक के अंतर्गत नगरीय पारिस्थैतिकी को संतुलित होने के लिए नियोजित उपनगर विकसित किये जाते है। पश्चिमी देशों के अधिकतर उपनगर नियोजित है जबकि विकासशील देशों में अनियोजित उपनगरों का भी विकास हुआ है। सामान्यतः उपनगरों का विकास विशिष्ट कार्यों के आधार पर होता है। आर्थिक विशेषताओं के आधार पर उपनगर छ: प्रकार के होते है जो निम्नलिखित है-

 उपनगर के प्रकार  उपनगर का उदाहरण (मुख्य नगर का नाम)
1. रिहायशी उपनगरलोनी (दिल्ली), येलाहंका (बैंगलोर), साऊथ हॉल (लंदन), पाटलीपुत्र कॉलोनी (पटना)
2. औद्योगिक उपनगरगाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, बहादुरगढ़, बलभगढ़ (दिल्ली के उपनगर)
3. प्रशासनिक उपनगरगांधीनगर (अहमदाबार) दिसपुर (गुआहाटी)
4. परिवहन उपनगर जसीडीह (देवघर), वाल्टेयर (विशाखापतनम)
5. शिक्षा उपनगरCambridge (लंदन का उपनगर), शांति निकेतन (ढोलपुर का उपनगर)
6. मिश्रित उपनगर फूलवारी शरीफ (पटना), चास (बोकारो)

                   ऊपर के तालिका से स्पष्ट है कि उपनगर महानगर अथवा बड़े नगर के कुछ विशिष्ट कार्यों को करता है। इससे बड़े नगर पर जनसंख्या दबाव में कमी आती है तथा ग्रामीण तथा ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण की प्रवृत्ति में परिवर्तन होता है। दिल्ली, कलकत्ता, मुंबई जैसे महानगर के उपनगर भी जनसंख्या दबाव के अंतर्गत आ गए है। प्रारंभ में ये आकर्षण शक्ति के रूप में कार्य करते है लेकिन विकासशील देशों में ग्रामीण जनसंख्या दबाव और बेरोजगारी के कारण आकर्षण शक्ति दबाव शक्ति में बदल जाती है और यही कारण है कि पूर्णतः नियिजित होने के बावजूद गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे उपनगरों में मलिन बस्तियों का तेजी से विकास हुआ है। अतः यह आवश्यक है कि उपनगरों के नगरीय पारिस्थैतिकी को संतुलित रखने के लिए या तो उसका विस्तार किए जाय या फिर जनसंख्या और कार्य की सीमा निर्धारित की जाए; अन्यथा ये नगर भी पूर्णतः मलिन बस्तियों में बदल सकते है।

               कलकत्ता का उपनगर- बजबज (औद्योगिक उपनगर), दमदम (Residential उपनगर), उत्तर पाड़ा (औद्योगिक उपनगर) मुंबई का थाने जो मिश्रित उपनगर और चेन्नई का पेराम्बुर औद्योगिक उपनगर है।

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