18. Town Planning / नगर नियोजन

 18. Town Planning / नगर नियोजन

Q. नगर नियोजन का तात्पर्य क्या है ? भारत में नगर-नियोजन की प्रक्रिया और उसके इतिहास के पहलू का व्याख्या करें।

               भारतीय जनगणना विभाग के अनुसार वह कोई भी गुच्छित बस्ती जिसकी जनसंख्या 5,000 या उससे अधिक है। जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति/वर्ग km है और वहाँ का 2/3 कार्यकारी पुरुष जनसंख्या द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों में संलग्न है। वैसी गुच्छित बस्ती को नगर कहा जाता है जबकि नगर नियोजन का तात्पर्य वैसे नीति एवं कार्यक्रम से है जिसके आधार पर नगरों का विकास किया जाता है।

सामान्यत: नगरों के विकास की प्रक्रिया के आधार पर नगरों को दो भागों में बाँटते हैं:-

(1) अनियोजित नगर

(2) नियोजित नगर

         अनियोजित नगर वैसे नगर को कहते है जिसका विकास जैविक रूप से हुआ हो और नियोजित नगर वैसे नगर को कहते हैं जिसके विकास के पूर्व ही उसके संबंध में सभी नीति एवं कार्यक्रमों का निर्धारण कर लिया जाता है। उसके बाद नगर बसाये जाते हैं। फ्रांसीसी विद्वान गिलियन ने नगर नियोजन के तीन मुख्य उद्देश्य बताते हैं:-

(1) नगरीय स्वाथ्य का विकास करना - इसका तात्पर्य है कि नगर-नियोजन के वक्त इस तरह की नीति अपनाई जानी चाहिए कि नगरों में गंदी बस्ती का विकास न हो सके। नगरों में मनोरंजन के साधन का पूर्ण व्यवस्था हो।(2)नगरीय संपत्ति की सुरक्षा - इसका तात्पर्य है नगर के उत्पादक कार्य और नगर के भू उपयोग  के बीच सतत् संतुलन बना रहे। 

(3) नगरीय सौन्दर्य का विकास - इसका तात्पर्य है नगर में पर्याप्त मात्रा में पार्क, होटल, सॉपिंग कम्प्लेक्स, ट्रेफिक, वृक्षों की पेटी, का पूरा विकास हो।

             नगर नियोजन का कार्य पाँच अवस्थाओं से गुजरकर पूरा होता है। जैसे-

प्रथम चरण - इस चरण में नगर बसाव वाले स्थान का सर्वेक्षण किया जाता है। सर्वेक्षण के दौरान यह जाँच की जाती है कि वह स्थान भूकम्प क्षेत्र में है या नहीं, भूदृश्य कैसा है? मानव बसान के लिए भौगोलिक परिस्थितियाँ कैसी है? भविष्य में प्राकृतिक संसाधनों के विकास की क्या संभावना है? इत्यादि।

         सर्वेक्षण के द्वारा जो ऑकड़े उपलब्ध होते हैं उसे सांख्यिकी विधि के द्वारा कम्प्यूटर या अन्य तकनीक के माध्यम से सारणीकृत एवं विभिन्न प्रकार के आरेख का निर्माण कर एक रफ मानचित्र का निर्माण करते हैं। उसके बाद यह निर्धारण किया जाता है कि किस स्थान पर किस कार्य के लिए संरचनात्मक सुविधाओं का विकास किया जाए।

दूसरी चरण - नगर के बनाये गये रफ मानचित्र को परिमार्जित कर अंतिम ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। उसके बाद वास्तविक धरातल पर अलग-2 कार्यों के लिए निर्धारित रेखांकन कर दिया जाता है।

तीसरा चरण - तीसरी अवस्था में सार्वजनिक सुविधाओं, मनोरंजनात्मक स्थल का विकास सबसे पहले किया जाता है उसके बाद लोगों को अधिवासीय वस्तु बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

चौथा अवस्था - चौथा अवस्था में नगर के बाहरी क्षेत्रों के लिए खण्डीय मानचित्र क निर्माण किया जाता है ताकि बढती हुई जनसंख्या को नियोजित किया जा सके।

पाँचवीं अवस्था - पाँचवी अवस्था में नियोजन के कार्यों को वास्तव में कार्य रूप प्रदान किया जाता है। अर्थात् राजनैतिक, प्रशासनिक एवं न्यायिक अड़चनों को दूर किया जाता है और अंतिम बनाये ब्लूप्रिंट मानचित्र में थोड़ा-बहुत परिवर्तन करके उसे कार्यान्वित किया जाता है।

भारत में नगर नियोजन का इतिहास 

                     भारत में नगर नियोजन की इतिहास सिन्धु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होती है क्योंकि सिन्धु घाटी सभ्यता के जिन स्थलों की खुदाई की गई है उन सभी स्थानों पर नियोजित नगर का प्रमाण मिला है। जैसे सड़के समकोण पर काटती थी। जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। सड़कों के किनारे प्रकाश का उचित प्रबंध था।       

                            भारत में आधुनिक नगर नियोजन 20वीं शताब्दी से मानी जाती है। 20वीं सदी में हुए नगर नियोजन को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है :-

(1) स्वतंत्रता के पूर्व हुए नगर नियोजन का कार्य 

(2) स्वतंत्रता के बाद हुए नगर नियोजन का कार्य

                   स्वतंत्रता के पूर्व प्रत्येक बड़े अनियोजित नगर के पास  नियोजित नगर का निर्माण किया गया। इस नियोजित नगर में सिविल लाइन्स, सैनिक छावनी और प्रशासनिक केन्द्र हुआ करते थे। जैसे- दिल्ली के पास दिल्ली कैण्ट, वाराणसी में वाराणसी कैंट, बंगलोर में बंगलौर कैण्ट, पटना में दानापुर सैनिक छावनी क्षेत्र या कैंट इत्यादि।

                  स्वतंत्रता के बाद और स्वतंत्रता के पूर्व किये गये नगर नियोजन के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में नियोजन कार्य की प्रवृति तीन प्रकार की रही है। जैसे:-

(1) वृतीय या अर्द्ध्वृतीय प्रतिरूप के आधार पर- ऐसे नियोजित नगर के केन्द्र में प्रशासनिक केन्द्र होता है और उसके चारों और अर्द्ध्वृताकर क्षेत्र में अधिवासीय बस्तियों का विकास किया जाता है।

(2) अरीय प्रतिरूप या मकड़ी जाली प्रतिरूप - इस प्रकार के प्रतिरूप में नगर के कई केन्द्र विकसित किये जाते हैं और प्रत्येक नगर को मुख्य नगर से जोड़ दिया जाता है। प्रत्येक उपनगर को जोड़ने के क्रम में सड़के वृत्त के समान दिखाई देने लगती हैं। नई दिल्ली मकड़ी जाल प्रतिरूप पर आधारित नगर है जिसके केन्द्र में कनॉड पैलेस अवस्थित है। इसी तरह से मुम्बई में हुतात्मा चौक को केन्द्र मानते हुए अरीय प्रतिरूप पर आधारित नगर का विकास किया गया है। 

(3) आय‌ताकार प्रतिरूप - आयताकार प्रतिरूप प्रणाली में सड़‌कें, एक-दूसरे के समकोण पर काटती है। ब्रिटिश सरकार के द्वारा आजादी के बाद इसी प्रणाली पर आधारित नगर नियोजन का कार्य दिया जा रहा है।

जैसे- जमशेदपुर, ईटानगर, दिसपुर, चण्डीगढ़, भुवनेश्वर इत्यादि सभी आयताकार प्रतिरूप पर आधारित है।

                         इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में नगर-नियोजन का इतिहास काफी लम्बा रहा है। वर्तमान समय में भारत के लगभग सभी नगरों में नियोजित नगर विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें सरकार एवं निजी क्षेत्र दोनों एक समान भूमिका निर्वहन कर रहे हैं।

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