वैसे भौगोलिक क्षेत्र जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेमी० से कम होती है, उसे शुष्क प्रदेश या मरुस्थलीय प्रदेश कहते हैं। जैसे- सहारा, कालाहारी, पश्चिम आस्ट्रेलिया, मध्य एशिया, गोबी, थार, सोनोरान, अटाकामा, पेटागोनिया मरुस्थल इत्यादि।
डेविस के अनुसार किसी भी भौगोलिक प्रदेश में दिखाई देने वाले विशिष्ट स्थलाकृतियों के समूह को भूदृश्य/भूआकृति या भ्वाकृतिक कहते हैं। भ्वाकृतियों या स्थलाकृतियों के विकास पर प्रक्रम का प्रभाव पड़ता है। प्रक्रम का तात्पर्य अपरदन के दूतों से है। शुष्क प्रदेश में अपरदन के दो प्रमुख प्रक्रम सक्रिय रहते हैं। जैसे :
(1) शुष्क वायु
(2) बहता हुआ जल (आकस्मिक वर्षा)
ये दोनों प्रक्रम शुष्क प्रदेशों में अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण का कार्य करते रहते हैं।
अपरदन - शुष्क वायु अपरदन की क्रिया तीन प्रकार से करती है -
(i) अपवाहन(Deflation) - अपवाहन क्रिया में वायु चट्टान-चूर्ण उड़ाकर अपरदन का कार्य करती है।
(ii) अपघर्षण(Abrasion) - तीव्र वेग से वायु के साथ उड़ते हुए रेत व धूलकण मार्गवर्ती शैलों को रगड़ते एवं घिसते हैं।
(iii) सन्निघर्षण(Attrition) - वायु के साथ उड़ते हुए धूल व रेत कण परस्पर टकराकर चूर-चूर हो जाते हैं।
शुष्क वायु अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक :-
(i) वायु की गति
(ii) वायु में रेत व धूलकणों की मात्रा
(iii) शैलों की संरचना
(iv) जलवायु
परिवहन - जब वायु अपरदन किए हुए चट्टान-चूर्ण को अपने साथ लेकर प्रवाहित होती है तो उसे परिवहन कहते हैं।
निक्षेपण - जब चट्टान-चूर्ण के साथ उड़ते हुए वायु के मार्ग में कोई अवरोधक मिलता है तो उसकी वहन क्षमता कम जाती है और चट्टान-चूर्ण का जमा होने लगता है, जिसे निक्षेपण कहते हैं।
शुष्क वायु द्वारा निर्मित अपरदित स्थलाकृति
1. वात गर्त/अपवाहन बेसिन
2. ज्यूगेन
3. यारदांड
4. गारा
5. छत्रक शिला
6. भूस्तंभ
7. मरुस्थलीय खिड़की
8. मरुस्थलीय पूल या मेहराव
9. ड्राई कान्टर
10. मरुस्थलीय बेसिन/अपवाह बेसिन
11. पेडीप्लेन एवं इंसेलवर्ग
निक्षेपित स्थलाकृति
1. बालुकस्तूप
(i) बरखान
(ii) सीफ
2. उर्मिल मैदान
3. लोएस मैदान
आकस्मिक व भारी वर्षा से निर्मित स्थलाकृति
1. जलोढ़ पंख
2. जलोढ़ शंकु
3. बाजदा
4. बालसन
5. प्लाया
6. सेलीनॉस
7. पेडीमेंट/पेडीप्लेन
8.अंत: प्रवाही नदी
अपरदित स्थलाकृति
1. ज्यूगेन :- जब शुष्क प्रदेश में कठोर एवं मुलायम चट्टान क्षैतिज एवं वैकल्पिक रूप में पायी जाती है। यदि सतह पर कठोर चट्टान हो तो तापीय प्रभाव से उसमें दरारें पड़ जाती है। उन दरारों के माध्यम से वायु प्रविष्ट कर मुलायम चट्टानों के अपरदन प्रारम्भ कर देती है, जिससे दवातनुमा स्थलाकृति बनती है, उसे ज्यूगेन कहते है।
जैसे - USA के कोलरेडो, दक्षिण कैलिफोर्निया क्षेत्र में।
2. यारडांग :- कठोर एवं मुलायम चट्टान लम्बवत एवं वैकल्पिक रूप में हो तो शुष्क वायु चट्टान के ऊपरी भाग मुलायम चट्टानों का अपघर्षण के माध्यम से अपरदित कर देती है और कठोर चट्टान यथावत रह जाता है, इसे यारडांग कहते है।
3. गारा एवं छत्रक शिला :- मरुस्थलीय भागों में यदि कठोर सेल के रूप में ऊपरी आवरण के नीचे कोमल से लंबवत रूप में मिलती है तो इस कारण पवन द्वारा निचले भाग में अत्यधिक अप घर्षण द्वारा आधार कठिन लगता है जबकि उसका ऊपरी भाग का प्रभावित रहता है। इस आकृति को गारा एवं छत्रक शिला कहा जाता है।
* यदि पवन एक ही दिशा से चलती है तो कटाव एक ही दिशा में होती है - गारा
* पवन कई दिशाओं में - छत्रक शिला
4. भूस्तम्भ :- शुष्क प्रदेशों में जहाँ पर असंगठित एवं कोमल शैल के ऊपर कठोर तथा प्रतिरोधी शैल का आवरण होता है, वहाँ कठोर शैलों के नीचे कोमल शैलों का अपरदन नहीं हो पाता है परंतु समीप के कोमल चट्टानों का अपरदन हो जाता है। जैसे - कालाहारी एवं कोलरैडो।
5. मरुस्थलीय खिड़की तथा मरुस्थलीय मेहराव/पुल :- मरुस्थलीय क्षेत्रों में कांग्लोमरेट चट्टानों की प्रधानता होती है। इन चट्टानों की सामान्य विशेषता है कि कठोर भाग के मध्य में मुलायम चट्टानें भी मिलती है। जैसे - पेंटागोनिया मरुस्थल।
6. अपवाह बेसिन/वात गर्त :- सतह के ऊपर असंगठित तथा कोमल शैलों के ढीले कणों को उड़ा ले जाती है जिस कारण छोटे-छोटे गर्तों का निर्माण होता है, जिसे अफवाह बेसिन कहते हैं। जैसे - सहारा, कालाहारी, यूएसए के पश्चिमी शुष्क प्रदेश।
7. पेडीप्लेन एवं इंसेलवर्ग :- इसके निर्माण में जलीय प्रक्रम का अधिक योगदान होता है।
* एल.सी. किंग - मरुस्थलीय प्रदेश के अंतिम अवस्था में अपरदन एवं निक्षेपण के परिणामस्वरूप लगभग समतल मैदान को - पेडिप्लेन
* जगह-जगह मिलने वाले कठोर चट्टानों (लम्बवत) को - इंसलबर्ग कहते है।
8. ड्राइकांटर :- पथरीले मरुस्थल में सतह पर पड़े शीलाखंडों पर पवन के अपरदन द्वारा शिलाखंड चतुष्फलक आकृति का बन जाता है तो उसे ड्राइकांटर कहते हैं।
निक्षेपित स्थलाकृति
1.बालुका स्तुप :- जब चलती हुई शुष्क वायु के मार्ग में कोई अवरोधक मिल जाता है तो इन्हीं अवरोधकों से टकराकर शुष्क वायु धूलकण निक्षेपण करने की प्रवृत्ति रखती है जिससे बालुका स्तूप का निर्माण होता है।
वेगनौल्ड महोदय ने बालुका स्तूप को दो भागों में बाँटा है -
* अनुप्रस्त बालुका स्तूप - बरखान
* अनुधैर्य - सीफ
2. बरखान :- इसमें वायु का निक्षेपण अवरोधक के दोनों किनारों पर होता है जिसके कारण अर्धचंद्राकार आकृति बन जाती है, जिसे बरखान कहा जाता है।
3. सीफ :- जब बरखान का एक बाँह की लंबाई बढ़ जाती है तो देखने पर हॉकी स्टिक के समान लगता है जिसे सीफ कहते हैं।
4. उर्मिल मैदान :- जब बालू एवं धूलकणों का निक्षेपण तरंगित मैदान के रूप में होता है तो उसे उर्मिल मैदान कहते है।
5. लोएस का मैदान :- आर्द्रता ग्रहण करने के कारण शुष्क वायु वहन क्षमता खो देती है। जैसे - चीन के मंचूरियन प्रांत - टकलामकान तथा गोबी मरुस्थल के मैदान बालू से निर्मित है।
आकस्मिक या भारी वर्षा से निर्मित
1. बाजदा :- प्लाया और पर्वतीय अग्रभाग के मध्य मंद ढाल वाले मैदान को बाजदा कहते है। इसका निर्माण मलवा के निक्षेपण से होता है।
2. बालसन :- रेगिस्तानी भागों में पर्वतों से गिरी बेसिन को वालसन कहते हैं।
3. प्लाया :- बालसन के नीचे गर्त में महीन बालू कण, घुलनशील चट्टानों और जलयुक्त अस्थायी झील को प्लाया कहते हैं।
4. सेलिनॉस :- जब प्लाया झील का जल वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है तो प्लाया झील बालसन का हिस्सा बन जाता है।
* कभी-कभी प्लाया झील सूखने के बाद नमक की परत दिखाई देती है वैसी परिस्थिति में उसे सेलिनॉस कहते हैं।
5. I आकार की घाटी :- USA के कोलरेडो पठार पर- I आकार की घाटी - ग्रैंड कनियन।
6. पेडीमेंट/पेडीप्लेन :- जब किसी उत्थित भूखंड पर आकस्मिक वर्षा होती है तो उत्थित भूखंड के ढाल पर स्थित ऋतुक्षरित चट्टानें बहते हुए जल के साथ नीचे गिर जाती है। फलत: उत्थित भूभाग का ऊपरी भाग पूर्णत: नग्न हो जाता है जिसे पेडीमेंट/पेडीप्लेन कहा जाता है।
7. अंत: प्रवाही नदी :- मरुस्थलीय प्रदेशों में जब तीव्र वर्षा होती है तो छोटी-छोटी सारिताओं का विकास होता है लेकिन यह नदियाँ समुद्र से जाकर नहीं मिलती है। इसीलिए इसे अंत: प्रवाही नदी कहते है।
निष्कर्ष :- उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि मरुस्थलीय अथवा शुष्क प्रदेशों में शुष्क वायु, आकस्मिक भारी वर्षा के द्वारा कई विशिष्ट अपरदित एवं निक्षेपित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
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