सागरीय जल का तापमान
(Temperature of Oceanic Water)
समुद्री जल ऊर्जा के अनेक स्रोतों से गर्म होने की प्रवृत्ति रखती है जिसे सागरीय तापमान कहते हैं। सागरीय जल को ऊष्मा कई स्रोतों से प्राप्त होती है। जैसे - सौर विकरण, रेडियो सक्रिय पदार्थों के विखंडन, ज्वालामुखी, सागरीय जल के दबाव एवं सागरीय जल के विभिन्न स्तरों के मध्य होने वाला घर्षण इत्यादि से। ऊर्जा के इन स्रोतों में से सबसे प्रमुख स्रोत सौर ऊर्जा है। सौर ऊर्जा स्थल और जल दोनों एक साथ प्राप्त करते हैं। लेकिन दोनों में तापमान ग्रहण करने की दर में अंतर होता है क्योंकि स्थल जल्दी गर्म होता है और जल्द ठंडा होने की प्रवृत्ति रखता है इसके विपरीत सागर जल देर से गर्म और देर से ठंडा होने की प्रवृत्ति रखता है। यही कारण है कि स्थल के औसत तापमान 15॰C की तुलना में सागरीय जल का औसत तापमान 17॰C होता है। समुद्री जल एवं स्थल के वार्षिक तापांतर में भी विभिन्नता पाई जाती है। जैसे- स्थल का वार्षिक तापांतर 145.5॰C है जबकि सागरीय जल का वार्षिक तापांतर 80॰C है। क्योंकि समुद्री जल में लगातार मिश्रण होता रहता है। जबकि स्थलीय भाग में इस तरह का कोई मिश्रण नहीं होता है। सागरीय जल सूर्य विकिरण के अवशोषण, पृथ्वी के नितल द्वारा, संवहन, गतिज ऊर्जा, जलवाष्प का संघनन जैसे प्रक्रियाओं से गर्म होता है। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सागरीय जल कई स्रोतों से एवं कई प्रक्रियाओं से गर्म होने की प्रवृत्ति रखते हैं। इन प्रक्रियाओं को कई कारक प्रभावित करते हैं। जिसके कारण सागरीय जल के वितरण में विविधता पाई जाती है।
सागरीय जल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक
समुद्री जल के तापमान को कई कारक प्रभावित करते हैं। जैसे :-
(1) अक्षांशीय स्थिति
(2) समुद्री जलधारा
(3) प्रचलित वायु और वायुदाब
(4) लवणता
(5) तट रेखा की बनावट
(6) मेघावरण
(7) हेमशीलाखंड
(8) समुद्री जल का घनत्व
(1) अक्षांशीय स्थिति
विषुवत रेखा (0॰ अक्षांश रेखा) या निम्न अक्षांशीय क्षेत्र सालों भर सूर्य की लंबवत किरण प्राप्त करते हैं। जिसके कारण इस क्षेत्र के समुद्री भाग में तापमान अधिक होता है। जबकि ध्रुवीय प्रदेश में सूर्य की किरणें सालोंभर तिरछी पड़ती है। इसलिए यहां का तापमान काफी कम होता है। विषुवतीय प्रदेश का औसत समुद्री तापमान 25॰-26॰C के मध्य होता है जबकि आर्कटिक सागर का औसत तापमान शून्य से -1॰C से 1.9॰C होता है।
(2) समुद्री जल धारा
यह ज्ञात है कि समुद्री जलधाराएं दो प्रकार की होती है -(i) गर्म जलधारा (ii) ठंडी जलधारा गर्म जलधाराएं निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की ओर चला करती है जबकि ठंडी जलधाराएं उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर चला करती है। जिसके कारण समुद्री जल के तापमान में स्थानांतरण की प्रक्रिया पाई जाती है। उत्तरी अटलांटिक पछुआ प्रवाह एक गर्म जलधारा है जिसके कारण उच्च अक्षांश के क्षेत्रों में स्थित बंदरगाहें खुली रहती है। जैसे नार्वे का हेमरफिस्ट और रूस का मरमंस्क बंदरगाह। दोनों लगभग एक ही अक्षांश पर स्थित है लेकिन समुद्री गर्म जलधारा के कारण हेमरफिस्ट का बंदरगाह सालोंभर खुला रहता है जबकि मरमंस्क बंदरगाह सालों भर लगभग बंद रहता है।
अलनीनो और लानीनो ऐसी दो जलधाराएं हैं जिसके कारण समुद्री जल के तापमान में विविधता उत्पन्न होती है। अलनीनो के कारण समुद्री जल के तापमान में 1-6॰C तक बढ़ोतरी होती है। जबकि लानीनो के कारण समुद्री जल के तापमान में गिरावट आती है।
(3) प्रचलित वायु और वायुदाब
समुद्री जल के तापमान का निर्धारक प्रचलित वायु और वायुदाब को भी माना जाता है। जैसे- उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों में समुद्र का जलस्तर नीचे जबकि निम्न वायुदाब वाले क्षेत्रों में समुद्र जल का स्तर ऊपर होता है जिसके कारण जल का प्रवाह उच्च जल स्तर से निम्न जलस्तर क्षेत्र की ओर होने लगता है। अगर जल का प्रवाह विषुवतीय निम्न वायुदाब से उपोष्ण उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर हो रहा हो तो तापमान का हस्तांतरण निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की ओर होता है। इसके विपरीत जब जल का प्रवाह उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र से उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र की ओर हो रहा हो तो तापमान का स्थानांतरण उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर होता है।
प्रचलित वायु मुख्यत: तीन है- (i) वाणिज्य हवा (ii) पछुआ हवा और (iii) ध्रुवीय हवा। ये हवाएं समुद्री सतह पर हजारों किलोमीटर तक सतत चलने की प्रवृत्ति रखती है। वाणिज्यिक हवा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र से विषुवतीय क्षेत्र की ओर ध्रुवीय हवा ध्रुवीय उच्चभार से निम्न उपध्रुवीय भार की ओर, जबकि पछुआ हवा उपोष्ण उच्चभार से निम्न उपध्रुवीय वायुदाब क्षेत्र की ओर चला करती है। ये हवाएं समुद्र से तापमान को ग्रहण भी करती है और समुद्री जल के तापमान को बढ़ाती है। यह वायु की प्रकृति पर निर्भर करती है। जैसे ध्रुवीय वायु ठंडी होने के कारण मध्य अक्षांशीय क्षेत्र के जलीय तापमान को घटा देती है। इसके विपरीत पछुआ हवा गर्म होने के कारण उच्च अक्षांश क्षेत्र के समुद्री तापमान को बढ़ा देती है।
(4) लवणता
समुद्री लवणता के कारण जल का प्रवाह कम लवणता वाले क्षेत्र से अधिक लवणता वाले क्षेत्र की ओर होता है। जैसे- अटलांटिक महासागर की तुलना में भूमध्य सागर का लवणता अधिक है जिसके कारण अटलांटिक महासागर का जल भूमध्यसागर में प्रविष्ट करता रहता है जिसके फलस्वरूप भूमध्यसागर के औसत तापमान में 1-2॰C तापमान की कमी हो जाती है।
(5) तट रेखा की बनावट
अगर कोई खुला समुद्र हो तो उसका तापमान कम होता है जबकि बंद सागरों का तापमान अधिक होता है। जैसे विश्व के तीनों बड़े महासागरों में सबसे कम औसत समुद्री तापमान प्रशांत महासागर का और सबसे ज्यादा औसत समुद्र तापमान हिंद महासागर का है। हिंद महासागर में भी लाल सागर और परसियन की खाड़ी का तापमान अरब सागर की तुलना में अधिक है क्योंकि वे दोनों सागर स्थलीय भाग से घिरे हैं जिसके कारण समुद्री जल का मिश्रण नहीं हो पाता है।
(6) मेघावरण
विषुवतीय क्षेत्र और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्षेत्र में मेघावरण अधिक पाई जाती है। जिसके कारण सूर्य की रोशनी समुद्री सतह पर सतह नहीं पड़ पाती है जबकि उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में आसमान सालोंभर साफ रहती है जिसके कारण समुद्री सतह सालोंभर सूर्यातप प्राप्त करती है। फलत: समुद्री जल के तापमान में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है।
(7) हिमशीलखण्ड
ध्रुवीय क्षेत्रों में गर्म समुद्री जलधारा के कारण एवं ग्लोबल वार्मिंग के कारण सदियों से जमीन पिघल रहे हैं जिसके कारण यहां एक ओर समुद्री जल स्तर वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर समुद्री जल की औसत तापमान में कमी आ रही है।
(8) समुद्री जल का घनत्व
समुद्री जल का घनत्व मूलतः लवणता से ही संबंधित है फिर भी अलग-अलग गहराई पर अलग-अलग समुद्री लवणता के कारण समुद्री जल में उदग्र रूप से कई स्तर पाए जाते हैं। जैसे - समुद्री जल के सबसे ऊपरी भाग में जब लवणता अधिक होती है तो उसका घनत्व भी अधिक हो जाता है जिसके कारण सौर विकरण के अवशोषण की क्षमता भी अधिक हो जाती है जबकि 100 फैदम गहराई के बाद लवणता में कमी के कारण दूसरी परत का निर्माण होता है फलत: ऊपरी परत की तुलना में निचली परत के तापमान में लगभग 1॰C कमी आ जाती है। अतः समुद्री जल के विभिन्न स्तर भी समुद्री तापमान को प्रभावित करने में सक्षम है।
सागरीय तापमान का वितरण
समुद्री जल के तापमान का वितरण को दो भागों में बाँटकर अध्ययन किया जाता है :-
(i) क्षैतिज वितरण
(ii) लम्बवत वितरण
(i) क्षैतिज वितरण
तीनों प्रमुख महासागरों के क्षैतिज तापमान को नीचे के तालिका में देखा जा सकता है :-
(ii) लम्बवत वितरण
समुद्री जल के तापमान का लंबवत वितरण का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है। इसके बावजूद समुद्री वैज्ञानिकों के द्वारा निम्नलिखित लम्बवत तापीय वितरण को मान्यता प्राप्त है : -
निष्कर्ष
इस तरह ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि समुद्री जल के क्षैतिज एवं उदग्र तापमान में काफी विषमता पाई जाती है।
No comments