महासागरीय नितल उच्चावच / Ocean Bottom Relief
महासागरीय नितल उच्चावच
(Ocean Bottom Relief)
प्रारंभ में ऐसी मान्यता थी कि महासागरीय सतह तश्तरी के समान होते हैं अर्थात इसके किनारे में ऊँचाई अधिक और बीच में सबसे गहरा क्षेत्र होगा। लेकिन चैलेंजर अभियान (1884,1888) के बीच खोजों से कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। जैसे पूरे धरातल का 70.8 प्रतिशत भूभाग पर समुद्र और शेष 29.2 प्रतिशत भाग पर स्थल का फैलाव है। समुद्र में सबसे गहरा भाग किनारे पर है। विश्व का सबसे लंबा पर्वत श्रृंखला अटलांटिक महासागर मैं अवस्थित है। वस्तुतः इस अभियान के बाद यह मान्यता विकसित हुई कि पृथ्वी के भूपटल का अध्ययन दो भागों में बांट कर किया जाना चाहिए :-
(1) समुद्री स्थलाकृति
(2) स्थलीय स्थलाकृति
क्योंकि समुद्री स्थलाकृति में भी वे सभी जटिलताएँ पाई जाती है जो स्थलीय स्थलाकृति में पाई जाती है। जिस प्रकार स्थलीय स्थलाकृति के विकास में भू-संचलन, अपरदन, निक्षेपन जैसे अंतर्जात एवं बहिर्जात बल का प्रभाव पड़ता है। ठीक उसी प्रकार समुद्री भूपटल पर भी पड़ता है। चैलेंजर अभियान के बाद समुद्री वैज्ञानिकों ने सोनार नामक वैज्ञानिक यंत्र का प्रयोग करके समुद्री ऊँचाई का निर्धारण करने का प्रयास किया। वर्तमान में यह कार्य कृतिम उपग्रह के माध्यम से किया जा रहा है।
अधिकतर समुद्री वैज्ञानिकों ने समुद्री उच्चावच का अध्ययन करने हेतु उच्चतादर्शी वक्र (Hypsographic Curve Method) को महत्वपूर्ण मानते हैं। इस दिशा में कोसीना (1921), Severdrup (1942) का कार्य सबसे महत्वपूर्ण है।Severdrup महोदय ने समुद्री भूपटल के क्षेत्रफल का प्रतिशत के रूप में X-अक्ष पर और ऊँचाई को Y-अक्ष पर लेते हुए उच्चतादर्शी वक्र को खींचा।
Severdrup ने अपने अध्ययन में बताया कि समुद्र की औसत ऊँचाई 3800 मीटर और स्थल की औसत ऊँचाई 840 मीटर है। समुद्री उच्चावच का अध्ययन करने हेतु समुद्री भूपटल को छ: प्रमुख समुद्री स्थलाकृति के रूप में विभाजित कर अध्ययन करते हैं। जैसे :-
(1) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelf)
(2) महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope)
(3) महासागरीय कटक एवं महासागरीय उभार (Oceanic Ridge and Sea Arc)
(4) महासागरीय बेसिन या मैदान (Oceanic Basin)
(5) महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)
(6) अन्य स्थलाकृतियाँ जैसे समुद्री कंदरा, समुद्री पहाड़ी, अवशिष्ट पहाड़ी, प्रवाल भित्ति इत्यादि।
उपरोक्त स्थलाकृतियों को एक काल्पनिक Hypsographic Curve के द्वारा दिखाया गया है -
(1) महाद्वीपीय मग्नतट (Continental Shelves)
यह महाद्वीप का ही भाग है जो सागर में डूबा होता है। यह ग्रेनाइट जैसे चट्टान से निर्मित होता है। यहाँ सागर छिछला होता है। इसका निर्माण धँसान या उत्थान से या अपरदन क्रिया से संभव होता है। डेली जैसे समुद्रीवेता के अनुसार "प्लीस्टोसीन कल्प में हिमानीयुग के अंत होने के बाद समुद्र के सतह में 150m का उत्थान हुआ।" इसका तात्पर्य है कि प्लीस्टोसीन काल तक महाद्वीपीय मग्नतट स्थलखंड के ही प्रत्यक्ष भूभाग थे। इसका ढाल समुद्र की ओर होता है। इसका औसत ढाल 1°/ Km या 17 फीट/मील बताया जाता है। संपूर्ण समुद्री क्षेत्रफल का 8.6 प्रतिशत भाग महाद्वीपीय मग्नतट के अंतर्गत आता है।
महाद्वीपीय मग्नतट का वितरण अत्यंत ही आसमान है। इसका सर्वाधिक विस्तार उत्तरी अटलांटिक महासागर में हुआ है। यहाँ इसका विस्तार हडसन की खाड़ी से लेकर नार्वेजियन सागर तक लगभग लगातार हुआ है। इसका प्रमुख कारण इस प्रदेश में समुद्री प्लेटफार्म का अवस्थित होना है। ये प्लेटफॉर्म प्लीस्टोसीन युग में हिमानी के पिघलने के बाद बढ़े हुए समुद्री जलस्तर के अपरदन से निर्मित हुआ है।
अटलांटिक महासागर के दक्षिणी भाग में सर्वाधिक सँकरे मग्नतट मिलते हैं। विश्व का सबसे सँकरा महाद्वीपीय मग्नतट अफ्रीका महाद्वीप में नामीबिया के अंगोला तट के मध्य मिलता है (चौ० 10 से 15 मीटर)। पुनः ब्राजील के तट, ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट, अफ्रीका के पूर्वी तट सँकरे महाद्वीपीय मगनतट का निर्माण करते हैं। इसका प्रमुख कारण भू-भ्रंश क्रिया है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग और उत्तरी भाग में मग्नतट चौड़ा है। इसका प्रमुख कारण निक्षेपन का कार्य बताया जाता है। दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट या एंडीज तट सँकरे है। इसी तरह उत्तरी अमेरिका का प्रशांत तट सँकरा है। इसका प्रमुख कारण दो प्लेटो का प्रत्यावर्तन (टकराना) है। अधिकतर छिछले सागर में महाद्वीपीय मग्नतट काफी चौड़ा हैं। इसका प्रमुख कारण अपरदन को बताया जाता है। यूरोप का उत्तरी सागर एक पिछला सागर है। यही कारण है कि उस सागर में विश्व के बड़े-बड़े मछलियों के बैंक अवस्थित है। जैसे - डागर बैंक
(2) महाद्वीपीय मग्नढाल (Continental Slope)
यह महाद्वीपीय मग्नतट का अग्र भाग है। यह तीव्र ढाल का क्षेत्र है। यह ग्रेनाइट से निर्मित होता है। इसे महाद्वीपों का अंतिम किनारा माना जाता है। इसमें बेसाल्ट से निर्मित चट्टानें मिलने लगती है। औसतन 200 से 300 मीटर की गहराई तक महाद्वीपीय मग्नढाल मिलते हैं लेकिन चिली और पेरू का तट इसका अपवाद है। यहाँ पर महाद्वीपीय मग्नढाल 3700 मीटर की गहराई तक मिलते हैं। महासागरीय क्षेत्रफल का 8.5 भूभाग इसके अंतर्गत आता है। इसका औसत ढाल 2° से 4.2°/Km होता है। ढालों का निर्माण धँसान क्रिया या प्लेटों के प्रत्यावर्तन से हुआ है। अफ्रीका के किनारे तथा उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिण अमरिका के पश्चिमी तट पर प्रत्यावर्तन क्रिया के कारण ही ढाल तीव्र पाए जाते हैं।
(3) महासागरीय कटक एवं महासागरीय उभार (Oceanic Ridge and Sea Arc)
यह एक ऐसी स्थलाकृति है जिसकी ऊँचाई समुद्री भूपटल से समुद्र तल तक या उससे नीचे भी हो सकता है। यह एक पहाड़ीनुमा स्थलाकृति है जिसमें चोटियाँ पाई जाती है और पार्श्व का ढाल तीव्र होता है। संरचना के दृष्टिकोण से रेखीय होते हैं। इसमें बेसाल्टिक चट्टानों की प्रधानता होती है। महासागरीय कटक का निर्माण प्लेटों के अपसरण सीमा के सहारे हुआ है। अपसरण सीमा के सहारे प्लेटें एक-दूसरे से दूर हटती है और दरार का निर्माण करती है। इन दरारों से ही मैग्मा पदार्थ मैग्मा चैंबर से बाहर आकर शीतल होती है और कटकों का निर्माण करती है।
विश्व का सबसे लंबा समुद्री कटक अटलांटिक महासागर में स्थित है जिसकी लंबाई 14400 किलोमीटर है जिसका आकार अंग्रेजी अक्षर 'S' के समान है। इसका विस्तार उत्तर में आइसलैंड से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक हुआ है। यह पृथ्वी पर का सबसे लंबा पर्वत श्रृंखला के रूप में जाना जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 2000 से 4000 मीटर तक है। कई स्थानों पर समुद्र से बाहर आकर छोटे-छोटे द्वीपों का निर्माण किया है। इसे उत्तरी अटलांटिक महासागर में विविल थॉमसन कटक और डॉल्फिन कटक कहते हैं जबकि दक्षिणी अटलांटिक में विषुवत रेखा के पास चैलेंजर कटक कहते हैं।
हिंद महासागर में भी कई समुद्री कटक मिलते हैं जिसकी लंबाई 9000 किलोमीटर है जिसका विस्तार लक्षद्वीप से लेकर अंटार्कटिका तक है। इसका औसत ऊंचाई 2000 मीटर है। इसी कटक पर मालद्वीप, सेल्सेस, मॉरीशस जैसे द्वीप स्थित है। इसके कई स्थानीय नाम है। जैसे- लक्का द्वीप चैगोस, सेंटपॉल चैगोस, एमस्टरडम सेंटपॉल कटक, करगुएलेन गॉसबर्ग कटक।
प्रशांत महासागर में भी कई कटक मिलते हैं। जैसे - लॉर्डहोवे कटक, टुआमाई कटक, एलबेडरॉस कटक, कोकस कटक, हवाईयन कटक इत्यादि के नाम से प्रसिद्ध है।
(4) महासागरीय बेसिन या मैदान (Oceanic Basin)
समुद्र के अंदर मिलने वाले सपाट मैदान को महासागरीय बेसिक या गहन सागरीय मैदान कहते हैं। सेवरडरूप ने बताया कि महासागरीय कटक के दोनों ओर महासागरीय मैदान का निर्माण हुआ है। यह मैदान 3000 से 6000 मीटर की गहराई में मिलते हैं। हैरिहेस महोदय ने इसकी उत्पत्ति का प्रमुख कारण महासागरीय नितल प्रसार को बताया है।
विश्व के सभी प्रमुख महासागर में महासागरीय मैदानों का प्रमाण मिलता है। जैसे अटलांटिक महासागर में अटलांटिक कटक के पश्चिमी भाग में चार गहन सागरीय मैदान मिलते हैं। जैसे - लैब्राडोर का मैदान, उत्तरी अमेरिकी बेसिन, ब्राजीलियन बेसिन, अर्जेंटीना बेसिन तथा अटलांटिक कटक के पूर्वी भाग में कुल सात मैदान मिलते हैं। जैसे - स्पेनिश मैदान, केपवर्डे मैदान, केनारी मैदान, गिनी मैदान, अंगोला मैदान, केप बेसिन, अगुल्हास बेसिन मिलते हैं।
इसी तरह हिंद महासागर में ओमान बेसिन, अरब बेसिन, सोमाली बेसिन, मॉरीशस बेसिन, अंडमान बेसिन, अंटार्कटिक बेसिन, जैसे गगन सागरीय मैदान मिलते हैं।
इसी तरह प्रशांत महासागर में कैलिफोर्निया के तट पर उत्तरी-पूर्वी बेसिन, जापान के तट पर उत्तरी-पश्चिमी बेसिन, पेरू एवं चिली के तट पर दक्षिण-पूर्वी प्रशांत बेसिन और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत बेसिन मिलते हैं।
(5) महासागरीय गर्त (Oceanic Deeps)
महासागरीय या समुद्री गर्त समुद्र का सबसे गहरा भाग होता है। इसकी औसत गहराई 6000 मीटर से अधिक होता है। यही एक रेखीय एवं सँकरी संरचना वाली आकृति है। इसके किनारे का ढाल काफी तीव्र होता है। इसकी उत्पत्ति का प्रमुख कारण प्लेटों का प्रत्यावर्तन है। कूल समुद्री क्षेत्रफल का 7% भाग इसके अंतर्गत आता है। विश्व में प्रमुख 57 समुद्री गर्त है। विश्व का सबसे गहरा समुद्री गर्त मेरियाना गर्त (11.02Km) है जो फिलीपींस द्वीप के पूर्वी भाग में अवस्थित है। विश्व का दूसरा सबसे गहरा गर्त टोंगा गर्त (5022 फैडम) जो दक्षिण प्रशांत महासागर में अवस्थित है। प्रशांत महासागर में प्रमुख 57 गर्तों में 32 गर्त और अटलांटिक महासागर में 19 गर्त तथा हिंद महासागर में 6 गर्त पाए जाते हैं। अटलांटिक महासागर का सबसे गहरा गर्त प्यूर्टोरिको गर्त है जबकि हिंद महासागर का सबसे गहरा गर्त सुंडा गर्त है।प्यूर्टोरिको गर्त उत्तरी अटलांटिक महासागर में कैरीबियन सागर के प्यूर्टोरिको द्वीप के पास स्थित है जिसकी औसत गहराई 4622 फैदम है। सुंडा गर्त इंडोनेशिया में जावा एवं सुमात्रा के मध्यवर्ती भाग में अवस्थित है जिसका औसत गहराई 3826 फैदम है।
(6) अन्य स्थलाकृतियाँ जैसे समुद्री कंदरा, समुद्री पहाड़ी, अवशिष्ट पहाड़ी, प्रवाल भित्ति इत्यादि
समुद्री भूपटल पर कई स्थालाकृतियाँ भी मिलते हैं। जैसे- चूना पत्थर से युक्त जीव जंतुओं के निक्षेप से प्रवाल भित्तियों का प्रमाण मिलता है। ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पूर्वी भाग में विश्व का सबसे लंबा प्रवाल भित्ति ग्रेट बैरियर रीफ मिलता है।
अन्य समुद्री स्थलाकृतियों में समुद्री कंदरा का विशेष स्थान प्राप्त है। यह 'V' आकृति का होता है। इसका निर्माण नदियों के अपरदन से महाद्वीपीय मग्नढाल पर होता है।
Sea Mount तथा ग्योट दो विशिष्ट प्रकार के समुद्री स्थलाकृति है। सी माउंट का आकार गुंबदाकार पहाड़ी के समान होता है। सी माउंट का ऊपरी भाग टूटकर या अपरदित होकर सपाट हो जाता है जिसे ग्योट कहते हैं।
निष्कर्ष
अटलांटिक महासागर के तलीय उच्चावच/BOTTOM RELIEF OF ATLANTIC OCEAN
हिंद महासागर के तलीय उच्चावच/BOTTOM RELIEF OF INDIAN OCEAN
प्रशांत महासागर के तलीय उच्चावच/BOTTOM RELIEF OF PACIFIC OCEAN
सागरीय जल का तापमान/Temperature of Oceanic Water
महासागरीय निक्षेप /Oceanic Deposits
हिन्द महासागर की जलधारा / Indian Ocean Currents
अटलांटिक महासागरीय जलधाराएँ /Atlantic Oceanic Currents
प्रवाल भित्ति/Coral Reaf/प्रवाल भित्ति के उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत
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