प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत/ Plate Tectonic Theory

           
             प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत
          (Plate Tectonic Theory)



                                              प्लेट विवर्तनिकी एक ऐसा सिद्धान्त हैजो भू-भौतिकी से संबंधित अनेक घटनाओं जैसे-पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी क्रिया इत्यादि के संबंध में व्यक्त किये गये सभी परम्परागत  सिद्धान्तों का परित्याग कर नया विचार प्रस्तुत करता है।
                                               इस परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी का ऊपरी भाग दृढ़ भूखंडों से निर्मित है। ये भूखंड कई भागों में विभक्त है, इसके एक भाग को प्लेट से संबोधित करते है। इन प्लेटों के  स्वभाव और प्रवाह से संबंधित अध्ययन को ही प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त  कहते है। यह सिद्धांत किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित नहीं है बल्कि इसमें कई विद्धानों का योगदान है। लेकिन हैरिहस महोदय ने इन सभी विचारों को संगठित कर एक सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया। 
 
  प्लेटों का स्वभाव
            इस परिकल्पना के अनुसार प्लेटों की अधिकतम मोटाई 100 KM और न्यूनतम मोटाई 5 KM तथा औसत मोटाई 70 KM है । अमेरिकी अर्थ साइंस के अनुसार पृथ्वी 7 बड़े और 6 छोटे प्लेट निम्नलिखित है -
        प्रमुख प्लेट - 7
1. प्रशांत महासागरीय प्लेट
2. उ० अमेरिकी प्लेट
3. द० अमेरिकी प्लेट
4. अफ्रीकन प्लेट
5. युरेशियन प्लेट
6. इण्डियन प्लेट
7. अंटार्कटिका प्लेट

  गौण प्लेट-6
(a) अरेबियन प्लेट
(b) फिलीपींस /फिलीपाइन प्लेट
(c) कोकस प्लेट
(d) नास्का प्लेट
(e) स्कोशिया प्लेट
(f) कैरेबियन प्लेट




इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटों को दो भागों में बांटा जाता है –
1. स्थिर प्लेट
2. गतिशील प्लेट

                       स्थिर प्लेटों के नीचे संवहन तरंगे नहीं चल रही है जबकि गतिशील प्लेटों के नीचे संवहन तरंगे चल रही है। 
                    इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटों के मिलन स्थल को प्लेट के सीमा या सीमांत कहते है। इसके अनुसार प्लेट में 3 प्रकार की सीमाएं बांटी जाती है । इसे  निम्न चित्रों में देखा जा सकता है-
 


संरचना के दृष्टिकोण से प्लेट दो प्रकार के होते है – 
1. महासागरीय प्लेट
2. महाद्वीपीय  प्लेट

                          महासागरीय प्लेट बैसाल्ट चट्टानों से निर्मित है तथा इसका घनत्व अधिक है जबकि महा प्लेट ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित है तथा इसका घनत्व कम है।
 
 प्लेटों के संचालन शक्तियाँ
  
                              इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्लेट पृथ्वी के अक्ष का अनुसरण करते हुए पूरब से पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित हो रही है। प्लेटों में गति हेतु कई कारक उत्तरदायी माना गया है जैसे- पृथ्वी के घूर्णन गति, प्लवनशीलता बल, गुरुत्वाकर्षण बल और प्लेटों का 45° पर प्रत्यावर्तन, सूर्य एवं चन्द्रमा का ज्वारीय बल, संवहन तरंग आदि।
                           इस सिद्धांत के अनुसार प्लेटों में 3 प्रकार के गतियाँ पायी जाती है जैसे - निर्माणकारी गति की उत्पत्ति अपसरण सीमा के सहारे होती है, विनाशकारी गति की उत्पति अभिसारी सीमा के सहारे तथा संरक्षी गति संरक्षी सीमा के सहारे उत्पन्न होता है।
  
प्लेटों का क्रियाविधि
                             उठती हुई संवहन तरंगे अपसरण सीमा को जन्म देती है। इसी सीमा के सहारे दरार का निर्माण होता है। इन दरारों से ही दुर्बलमंडल से लावा/मैग्मा निकलती है जिससे ज्वालामुखी क्रिया होती है। गिरती हुई संवहन तरंगे अभिसारी सीमा का निर्माण करती है। इस सीमा के सहारे अधिक घनत्व वाले प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट में घुसने की प्रवृति रखती है। प्लेट अत्यधिक अंदर जाकर पिघलती है और बेनी ऑफ जोन” निर्माण करती है तथा चट्टानों के वलन के साथ-साथ ज्वालामुखी का उदगार भी होता है। इसे निम्न चित्र से समझा जा सकता है –



इस सिद्धांत के पक्ष में प्रस्तुत किये गए प्रमाण 

प्लेट विवर्तनिकी के समर्थन में निंलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये गए है –
1. ज्वालामुखी- विश्व के ज्वालामुखी वितरण के अध्ययन से स्पष्ट है कि विश्व के अधिकांश ज्वालामुखी क्रियाएं अभिसारी प्लेट सीमा के सहारे होती है।
2. भूकम्प- भूकम्पीय वितरण के अध्ययन से स्पष्ट है कि विश्व में सर्वाधिक भूकम्प प्रशांत महासागर के चारों ओर स्थित क्षेत्रों में आती है ये क्षेत्र संरक्षी प्लेट सीमा के सहारे स्थित है।
3. सागर नितल प्रसार और पुराचुमकत्व – सागर नितल प्रसार सिद्धान्त से स्पष्ट है कि सागर नितल प्रसार अपसारी सीमा के सहारे हो रही है तथा नवीन चट्टानों में पुराचुमकत्व का गुण कम तथा पुराने चाट्टानों में चुमकत्व का गुण अधिक पाया जाता है।

भूगर्भिक समस्याओं का समाधान 

                                प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के माध्यम से कई भूगर्भिक समस्याओं का समाधान होता है। जैसे - पर्वतों के उत्त्पति, भूकंप, भूसंचालन, महाद्विपीय विखण्डन, समुद्री नितल प्रसार, पुराचुमकत्व, द्वीपीय चाप के निर्माण आदि।

आलोचना
          उपरोक्त विशेषताओं के वाबजूद इस सिद्धांत की कई खामियां है। जैसे -  प्लेटों की संख्या का स्पष्ट पता नहीं चल पाता है, प्लेटों में संवहन तरंगे क्यों उत्पन्न होती है?, हरसिनियन और कैलिडोनियन युग के पर्वतों की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं करता है, बेनी ऑफ जोन से निकलने वाला मैग्मा पदार्थ के परिणाम का वैज्ञानिक व्याख्या नहीं करता। 
  
                        इन सीमाओं के वाबजूद भूगर्भ विज्ञान का एक क्रांतिकारी विचार है क्योंकि भूपटल से संबंधित सभी भूगर्भिक घटनाओं का एक बार में ही व्याख्या प्रस्तुत करता है।

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